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प्रश्न १- सम्यक्दृष्टि ज्ञानी की भावना कैसी होती है ? उत्तर - सम्यक्दृष्टि ज्ञानी छह काय के जीवों पर दया भाव रखता है। उसके अंतरंग में सबके प्रति
मैत्री भाव होता है। सब जीवों को सम भाव से देखता है। किसी के प्रति ऊँच-नीच का भेद भाव नहीं रखता; क्योंकि उसकी दृष्टि अपने द्रव्य स्वभाव पर रहती है। दीन - दु:खी जीवों
पर उसके हृदय में करुणा होती है। किसी जीव को कोई कष्ट न हो, ऐसी भावना रहती है। प्रश्न २- सम्यक्दृष्टि व्रती श्रावक कौन-कौन सी भावनायें भाता है? उत्तर - सम्यक्दृष्टि व्रती श्रावक मैत्री, प्रमोद, कारुण्य, माध्यस्थ भावना भाता है। प्रश्न ३- मैत्री आदि भावनाओं का क्या स्वरूप है? उत्तर - मैत्री- दूसरे जीवों को दु:ख न देने की भावना को मैत्री भावना कहते हैं।
प्रमोद-गुणीजनों के प्रति हर्ष पूर्वक अन्तरंग भक्ति प्रगट होने को प्रमोद भावना कहते हैं। कारुण्य - दु:खी जीवों को देखकर उनके प्रति करुणा भाव होने को कारुण्य भावना कहते हैं। माध्यस्थ-जो जीव तत्त्वार्थ श्रद्धान से रहित हैं और तत्त्व का उपदेश जिन्हें अच्छा नहीं लगता ऐसे जीवों के प्रति तटस्थ रहने को माध्यस्थ भावना कहते हैं।
गाथा-२२ ममल स्वभाव की दृष्टि से कर्म क्षय एकांत विप्रिय न दिस्टं, मध्यस्थं विमल सुद्ध सभावं ।
सुद्ध सहावं उत्तं, ममल दिस्टी च कम्म संविपनं ॥ अन्वयार्थ-(एकांत) एकांत (विप्रिय) विपरीत भाव को (न दिस्ट) नहीं देखता, वह (मध्यस्थ) मध्यस्थ रहकर (विमल) विमल (सुद्ध सभावं) शुद्ध स्वभाव में रहता है (च) और (सुद्ध सहावं) जो शुद्ध स्वभाव (उत्तं) कहा है (ममल) इसी ममल स्वभाव पर (दिस्टी) दृष्टि रखने से (कम्म) कर्म (संषिपन) क्षय हो जाते हैं।
अर्थ - आत्मार्थी ज्ञानी साधक एकांत और विपरीत भाव पर श्रद्धान नहीं करता, वह मध्यस्थ रहकर विमल शुद्ध स्वभाव में रहता है और श्री जिनेन्द्र भगवान ने आत्मा का जो शुद्ध स्वभाव कहा है, इसी ममल स्वभाव पर दृष्टि रखने से उसके कर्म क्षय हो जाते हैं, वस्तुतः स्वभाव साधना ही मुक्ति का मार्ग है। प्रश्न १- निश्चय और व्यवहार नय का क्या स्वरूप है? उत्तर - जो अभेद के आश्रय से होता है उसे निश्चय नय कहते हैं। जो भेद के आश्रय से होता है उसे
व्यवहार नय कहते हैं। प्रश्न २- नयों को एकांत से ग्रहण करने वाला कौन होता है? उत्तर - निश्चय नय को एकान्त से ग्रहण करने वाला निश्चयाभासी मिथ्यादृष्टि है । व्यवहार नय को
एकान्त पक्ष से मानने वाला व्यवहाराभासी मिथ्यादृष्टि है। दोनों को एक सा उपादेय मानने
वाला उभयाभासी मिथ्यादृष्टि है। प्रश्न ३- ज्ञानी कौन से नय को ग्रहण करता है ? उत्तर - ज्ञानी वस्तु स्वरूप को जानता है। वह निश्चय नय के विषयभूत शुद्धात्म तत्त्व की आराधना