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गाथा - २०
विमल स्वरूप में रहना ही मुक्ति मार्ग
विमलं च विमल रूयं न्यानं विन्यान न्यान सहकारं । जिन उत्तं जिन वयनं जिन सहकारेन मुक्ति गमनं च ॥
अन्वयार्थ (जिन उत्तं) जिनेन्द्र भगवान कहते हैं कि (विमलं च) कर्म मलों से रहित (विमल रूवं) अपना विमल स्वरूप है (न्यानं) ज्ञान पूर्वक [ इसी] (विन्यान न्यान) ज्ञान विज्ञान मयी स्वभाव का (सहकार) सहकार करो (जिन) जिन अर्थात् वीतराग स्वभाव के (सहकारेन) सहकार करने से ही (मुक्ति) मुक्ति की ( गमनं च) प्राप्ति होती है (जिन वयनं) यही जिन वचन हैं ।
अर्थ - श्री जिनेन्द्र भगवान कहते हैं - द्रव्य कर्म, भाव कर्म और नो कर्मों से रहित आत्मा का विमल स्वभाव है | ज्ञान पूर्वक अपने ज्ञान विज्ञानमयी स्वभाव का सहकार करो, यही जिन वचन हैं । जिन स्वभाव के सहकार करने से, आत्म स्वरूप में लीन रहने से मोक्ष की प्राप्ति होती है ।
प्रश्न १
मुक्ति का मार्ग क्या है ?
उत्तर जिनेन्द्र परमात्मा के कहे अनुसार शरीरादि संयोग से और कर्म मलों से रहित एक अखंड अविनाशी आत्म स्वरूप को स्वीकार करना तथा श्रद्धान, ज्ञान सहित अपने स्वभाव में रहना मुक्ति का मार्ग है।
प्रश्न २- सर्वज्ञ स्वभावी आत्मा का अनुभव कौन करते हैं ?
उत्तर जो जीव कर्म मल और रागादि भावों से भिन्न परमात्मा के समान अपने ज्ञायक स्वरूप का श्रद्धान करते हैं। वे सर्वज्ञ स्वभावी आत्मा का अनुभव करते हैं ।
प्रश्न ३- जीवन में समता शांति किस प्रकार आती है ?
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उत्तर निज स्वानुभूति पूर्वक यह तत्त्व निर्णय स्वीकार करना कि जिस समय जिस जीव का जिस द्रव्य का जैसा जो कुछ होना है, वह अपनी तत् समय की योग्यतानुसार हो रहा है और होगा, उसे कोई टाल फेर बदल सकता नहीं, इस निर्णय से जीवन में समता शांति आती है।
गाथा - २१
अहिंसा मयी आचरण की प्रेरणा
क्रिपा सहकार विमल भावेन । क्रिपा सह विमल कलिस्ट जीवानं ॥
षट्काई जीवानं, सत्वं जीव समभावं अन्वयार्थ - [सम्यदृष्टि ज्ञानी] (विमल भावेन) विमल भाव के ( सहकार ) सहकार पूर्वक (षट्काई) छह काय के (जीवानं) जीवों पर (क्रिपा) दया भाव रखता है (सत्वं जीव) प्राणी मात्र के प्रति (समभाव) समभाव रखता है और (सह विमल) विमल भाव सहित (कलिस्ट) दुःखी (जीवानं ) जीवों पर (क्रिपा) करुणा से ओतप्रोत रहता है ।
अर्थ सम्यदृष्टि ज्ञानी विमल स्वभाव के सहकार पूर्वक षट्कायिक अर्थात् छह काय के जीवों पर दया भाव रखता है। प्राणी मात्र के प्रति उसके हृदय में समभाव होता है और विमल भाव सहित दुःखी जीवों के प्रति वह करुणा से ओतप्रोत रहता है।