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प्रश्न २- ज्ञानी सम्यकचारित्र की सिद्धि के लिये अपने स्वभाव का कैसा बहमान जाग्रत करते
उत्तर - निश्चय से आत्मा परम तत्त्व है। एक ही समय में जानने और परिणमन करने के कारण
आत्मा को समय कहते है । आत्मा द्रव्य कर्म, भाव कर्म, नो कर्म से रहित होने से शुद्ध है। स्वतंत्र चैतन्य स्वरूप पूर्ण ज्ञानमय होने से केवली है । मनन मात्र होने से मुनि है। ज्ञानमय होने से ज्ञानी है। स्वभाव से सिद्ध परमात्मा के समान आठ कर्म रहित और जन्म,जरा,मरण से रहित होने के कारण सिद्ध है। ज्ञानी इस प्रकार अपने स्वभाव का बहुमान जाग्रत करके
शुद्ध स्वभाव में स्थित होकर सम्यक्चारित्र की सिद्धि करते हैं। प्रश्न ३- पर पर्याय और शल्य आदि विभाव कैसे छूटते हैं? उत्तर - शरीरादि संयोग आत्मा से भिन्न हैं। वे कभी आत्मा नहीं होते और आत्मा कभी शरीरादि
संयोग रूप नहीं होता। इस प्रकार पर को पर रूप और आत्मा को ज्ञाता दृष्टा चिदानंदमय समझ कर उसी में लीन रहने से पर पर्याय और शल्य आदि विभाव भाव छूट जाते हैं।
गाथा - १५ विभाव का परिहार, स्वरूप में रमणता-सम्यक्चारित्र अब न चवन्त, विकहा विसनस्य विसय मुक्तं च ।
न्यान सहाव सु समय, समय सहकार ममल अन्मोयं ॥ अन्वयार्थ - (सु समयं) स्व समय [शुद्धात्मा] (न्यान सहाव) ज्ञानानंद स्वभावी है (ममल) इसी ममल (समय) स्व समय के (सहकार) आश्रय पूर्वक (अन्मोयं) अनुमोदना करने से (अबभं न) अब्रह्म भाव नहीं रहता, छूट जाता है (चवन्त) चार प्रकार की (विकहा) विकथा (विसनस्य) व्यसन (च) और (विसय) विषय आदि विकार (मुक्त) छूट जाते हैं।
अर्थ- अपना स्व समय अर्थात् शुद्धात्मा ज्ञानानंद स्वभावी है, इसी ममल शुद्धात्म स्वरूप का सहकार करो, अनुमोदना करो इससे अब्रह्म भाव छूट जाता है । चार प्रकार की विकथा - राजकथा, चोरकथा, भोजनकथा और स्त्रीकथा इन विकथाओं के साथ - साथ व्यसन और विषय विकारों का भी अभाव हो जाता है। प्रश्न १- ज्ञानी सहज वैरागी कैसे होते हैं? उत्तर - जिनके अंतर में भेदज्ञान रूपी कला जाग जाती है। जो चैतन्य के आनंद का वेदन करते हैं ऐसे
ज्ञानी संसार शरीर भोगों से सहज वैरागी होते हैं। प्रश्न २- किस कषाय के सद्भाव में कौन सा चारित्र नहीं हो सकता? उत्तर - अनंतानुबंधी कषाय के सद्भाव में स्वरूपाचरण चारित्र, अप्रत्याख्यानावरण के सद्भाव में
देश चारित्र, प्रत्याख्यानावरण के सद्भाव में सकल चारित्र और संज्वलन कषाय के सद्भाव में
यथाख्यात चारित्र नहीं हो सकता। प्रश्न ३- ज्ञानी की दृष्टि कहाँ रहती है और उससे क्या लाभ होता है? उत्तर - ज्ञानी की दृष्टि शुद्धात्म तत्त्व पर रहती है फिर भी वह जानता सबको है। शुद्ध-अशुद्ध पर्यायों