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गाथा - १० महिमा मयी स्वभाव में आचरण की प्रेरणा तिअर्थ सुद्ध दिस्ट, पंचार्थ पंच न्यान परमिस्टी ।
पंचाचार सुचरनं, संमत्तं सुद्ध न्यान आचरनं ॥ अन्वयार्थ - (तिअर्थ) ॐकार, हींकार, श्रींकार स्वरूप रत्नत्रय मयी (सुद्ध) शुद्ध स्वभाव को (दिस्ट) देखो (पंचार्थ) पाँच अर्थ (पंच न्यान) पाँच ज्ञान (परमिस्टी) पाँच परमेष्ठी पद को ग्रहण करो (पंचाचार) पाँच आचार में (सुचरन) आचरण करो (संमत्तं) सम्यक्त्व से (सुद्ध) शुद्ध (न्यान) ज्ञान स्वभाव में (आचरन) आचरण करो, लीन रहो।
अर्थ - हे आत्मन् ! ओंकार, हृींकार, श्रींकार स्वरूप रत्नत्रयमयी शुद्ध स्वभाव को देखो, पाँच अर्थ - (उत्पन्न अर्थ, हितकार अर्थ, सहकार अर्थ जान अर्थात् ज्ञान अर्थ और पय - पद अर्थ) पाँच ज्ञान - (मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्ययज्ञान और केवलज्ञान) पाँच परमेष्ठी - (अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु) पद को ग्रहण करो। पाँच आचार (दर्शनाचार, ज्ञानाचार, वीर्याचार, तपाचार, चारित्राचार) में आचरण करो तथा सम्यक्त्व से शुद्ध अपने ज्ञान स्वभाव में लीन रहो। प्रश्न १- अध्यात्म साधना के अंतर्गत पाँच अर्थ की साधना क्या है? उत्तर - अध्यात्म साधना के अन्तर्गत पाँच अर्थ का स्वरूप- उत्पन्न अर्थ (सम्यग्दर्शन), हितकार
अर्थ (सम्यग्ज्ञान), सहकार अर्थ (सम्यक्चारित्र) पूर्वक जान अर्थ (ज्ञान अर्थ अर्थात् केवलज्ञान) सहित पय अर्थ (पद अर्थ) सिद्ध पद प्रगट होना ही पाँच अर्थ की साधना है।
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