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प्रश्न १- जीव के लिये बंधन और मुक्ति का मार्ग क्या है? उत्तर - परभाव, शरीर की क्रिया आदि में अज्ञान भाव सहित आसक्त रहना जीव के लिये बंधन है।
ज्ञान बल से अनासक्त भाव पूर्वक ज्ञान स्वभाव में रहना मुक्ति का मार्ग है। प्रश्न २- ज्ञान मार्ग के पुरुषार्थ के अंतर्गत गुरूदेव तारण स्वामी क्या कहते हैं? उत्तर - ज्ञान मार्ग के पुरुषार्थ के अन्तर्गत सदगुरू तारण स्वामी कहते हैं कि मन को शांत नहीं करना,
स्वयं शांत होना है। भाव - विभावों को नहीं बदलना है, स्वयं निज स्वभाव में रहना है। जैसे- आकाश में बादल दिखाई देते हैं लेकिन कुछ ही समय में अपने आप विला जाते हैं। इसी प्रकार मन और संसारी भाव भी नाशवान हैं। इनसे दृष्टि हटाकर भेदज्ञान तत्त्व निर्णय के
बल से अपने शुद्ध स्वभाव में लीन रहना, यही ज्ञान मार्ग का पुरुषार्थ है। प्रश्न ३- जीव का संसार में परिभ्रमण कब समाप्त होता है? उत्तर - विशुद्ध ज्ञान के बल से ममल स्वभाव में लीन होने पर जीव का संसार में परिभ्रमण समाप्त
हो जाता है।
गाथा-८ ज्ञानी को उत्पन्न तीन प्रकार का वैराग्य वैरागं तिविह उवन्न, जनरंजन रागभाव गलियं च ।
कलरंजन दोस विमुक्कं, मनरंजन गारवेन तिक्तं च ॥ अन्वयार्थ-ज्ञानी साधक को (तिविह) तीन प्रकार का (वैराग) वैराग्य (उवन्न) उत्पन्न हो जाता है (जनरंजन) जनरंजन (राग भाव) राग भाव (गलिय) गल जाता है (कलरंजन) कलरंजन (दोस) दोष से (विमुक्क) विमुक्त हो जाते हैं (च) और (मनरंजन) मनरंजन (गारवेन) गारव का (तिक्तं च) त्याग कर देते हैं।
अर्थ - आत्मानुभवी ज्ञानी साधक को तीन प्रकार का वैराग्य उत्पन्न हो जाता है। संसार से जिनकी दृष्टि हट गई है, उनका जनरंजन राग भाव गल जाता है। ज्ञानी कलरंजन दोष से विमुक्त हो जाते हैं, वे मनरंजन गारव को भी त्याग कर अपने स्वभाव में लीन होने की परम साधना करते हैं। प्रश्न १- जनरंजन राग क्या है? उत्तर - जनरंजन राग भाव है। जनरंजन का अर्थ है संसारी जीवों को प्रसन्न करना, प्रभावित करना,
रंजायमान करना। संसार की तरफ दृष्टि होने से जनरंजन राग होता है। जनरंजन राग के द्वारा अपनी प्रभावना, प्रसिद्धि की चाह और इच्छा पूर्ति का अभिप्राय रहता है । इसके अन्तर्गत
कुटुम्ब, परिवार, समाज, संसार सभी आ जाते हैं यह राग भाव कर्म बंध का कारण है। प्रश्न २- कलरंजन दोष क्या है? उत्तर - शरीर के आश्रय से शरीर संबंधी परिणाम होना और शरीर में रंजायमान रहना कलरंजन दोष
है। कलरंजन दोष के परिणाम दुर्गति में ले जाने वाले हैं। प्रश्न ३- मनरंजन गारव क्या है? उत्तर - मनरंजन गारव अहंभाव है। मनरंजन का अर्थ है मन से रागादि भावों में रस लेना, मन के