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प्रश्न २- सम्यक् चारित्र मोक्ष का मार्ग कैसे है ?
उत्तर
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प्रश्न ३ - उत्तर
गाथा - ४
मिथ्या भावों को जीतने का फल
जिनयति मिथ्याभावं, अन्रित असत्य पर्जाव गलियं च ।
गलियं कुन्यान सुभावं विलय कंमान तिविह जोएन ॥
अन्वयार्थ - (मिथ्याभावं) तीन प्रकार के मिथ्या भावों को (जिनयति) जो जीतता है [ उसकी ] (अन्रित) क्षणभंगुर (असत्य) असत्य (पर्जाव ) पर्याय (गलियं) गल जाती है (कुन्यान सुभावं ) कुज्ञान भाव [भी] (गलियं) गल जाता है (च) और (तिविह) तीन प्रकार के (जोएन) योग की एकता से (कंमान) कर्म (विलय) विला जाते हैं, क्षय हो जाते हैं।
अर्थ - जो भव्य जीव तीन प्रकार के मिथ्यात्व भाव पर विजय प्राप्त करता है, उसकी कर्मोदय जति विभावरूप क्षणभंगुर असत् पर्याय गल जाती है। कुशान भाव भी गल जाता है और तीन प्रकार के योग की अर्थात् मन वचन काय की एकाग्रता पूर्वक शुद्धात्म स्वभाव में लीन होने से कर्मों के समूह क्षय हो जाते हैं, विलय हो जाते हैं।
प्रश्न १- असत् पर्याय, कुशान और कर्म कैसे गलते विलाते हैं ?
उत्तर
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प्रश्न २ - उत्तर
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पर द्रव्यों से भिन्न ज्ञायक स्वभाव के लक्ष्य से बारम्बार भेद ज्ञान का अभ्यास करने से विकल्प टूट जाते हैं। उपयोग के गहराई में जाने से आत्मा के दर्शन होते हैं। उपयोग का ध्रुव तत्त्व के अवलम्बन द्वारा अंतर में स्थिर होना सम्यक्चारित्र अर्थात् मोक्ष का मार्ग है ।
ममल स्वभाव का अर्थ क्या है ?
ममल का अर्थ है त्रिकाली शुद्ध ध्रुव स्वभाव, जिसमें अतीत में कर्म मल नहीं थे, वर्तमान में नहीं हैं और भविष्य में कर्म मल नहीं होंगे, ऐसे परम शुद्ध स्वभाव को ममल कहते हैं ।
प्रश्न ३ - उत्तर
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जो ज्ञानी तीनों योग की एकाग्रता कर निज स्वभाव में लीन होते हैं वही तीन प्रकार के मिथ्यात्व भाव को जीतते हैं और क्षणभंगुर भावों में भयभीत नहीं होते, उनकी विभावरूप समस्त असत् पर्यायें गल जाती हैं। कुज्ञान भाव भी गल जाता है और कर्मों के समूह के समूह विला जाते हैं ।
मिथ्या भाव क्या हैं ?
यह शरीर मैं हूं, यह शरीरादि मेरे हैं, मैं इन सबका कर्ता हूं यही मिथ्याभाव हैं जो अज्ञान दशा में होते हैं।
मिथ्याभावों को कैसे जीतें ?
ज्ञान मार्ग में अपना आत्मबल, ज्ञानबल सहकारी होता है। भेदज्ञान - तत्त्व निर्णय पूर्वक वस्तु स्वरूप का सत्श्रद्धान करना, पर्यायी भावों में भयभीत न होना और उन्हें अच्छा - बुरा नहीं मानना, ज्ञान भाव में स्थिर रहना मिथ्या भावों को जीतने का उपाय है।