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________________ ११० पाठ-२ ग्यारह प्रतिमा परिचय प्रश्न - प्रतिमा किसे कहते हैं? उत्तर - सम्यग्दर्शन सहित परिणामों की विशुद्धता पूर्वक आत्मोन्नति की श्रेणियों पर आरोहण करने को प्रतिमा कहते हैं। प्रश्न - श्रावक के जीवन में प्रतिमाओं का क्या महत्व है। उत्तर देशविरत पाँचवें गुणस्थानवर्ती श्रावक की ग्यारह प्रतिमाएँ या श्रेणियाँ होती हैं। ये श्रेणियाँ धीरे-धीरे क्रमशः चारित्र बढ़ाने की व कषाय घटाने की उपयोगी रीतियाँ हैं। श्रावक इनको क्रम से उत्तीर्ण करता हुआ मुनि पद को सुगमता से धारण कर सकता है। ये प्रतिमाएँ संसार के दुःखों का क्षय करने वाली और शुद्धात्मा को झलकाने वाली हैं। प्रश्न - प्रतिमाएँ कितनी और कौन-कौन सी हैं। उत्तर - प्रतिमाएँ ग्यारह होती हैं । १. दर्शन प्रतिमा, २. व्रत प्रतिमा, ३. सामायिक प्रतिमा, ४. प्रोषधोपवास प्रतिमा, ५. सचित्त त्याग प्रतिमा, ६. अनुराग भक्ति प्रतिमा, ७. ब्रह्मचर्य प्रतिमा, ८. आरंभ त्याग प्रतिमा, ९. परिग्रहत्याग प्रतिमा, १०. अनुमति त्याग प्रतिमा, ११. उद्दिष्ट त्याग प्रतिमा। इन प्रतिमाओं में क्रमशः चारित्र बढ़ता जाता है। पहली प्रतिमा का चारित्र दूसरी प्रतिमा में छूटता नहीं है। पहली प्रतिमा का चारित्र पालते हुए आगे की प्रतिमाओं का चारित्र पालन किया जाता है। प्रश्न - दर्शन प्रतिमा धारी श्रावक किसे कहते हैं ? उत्तर - जिसका सम्यग्दर्शन निर्दोष हो, जो संसार शरीर भोगों से वैरागी हो, पंच परमेष्ठी का आराधक हो। आगे के व्रत आदि पदों को धारण करने के लिये उत्सुक रहता हो वह दर्शन प्रतिमाधारी श्रावक है। सार सिद्धांत-निज शुद्ध चैतन्य प्रतिमा का दर्शन ही दर्शन प्रतिमा है। प्रश्न - व्रत प्रतिमा किसे कहते हैं? उत्तर - जो पाँच अणुव्रत, तीन गुणव्रत और चार शिक्षाव्रत इन बारह व्रतों को आत्मिक भावों की शुद्धि पूर्वक निरतिचार पालन करता है वह व्रत प्रतिमाधारी श्रावक कहलाता है। सार सिद्धांत-राग द्वेष आदि विकारी भावों से विरक्त, स्वभाव में रत रहना ही व्रत प्रतिमा है। प्रश्न - व्रत किसे कहते हैं? उत्तर - पापों के त्याग को व्रत कहते हैं। व्रत के दो भेद हैं - १. अणुव्रत - पापों के एक देश त्याग को अणुव्रत कहते हैं। अणुव्रती श्रावक होता है। २. महाव्रत - पापों के सर्व देश त्याग को महाव्रत कहते हैं। महाव्रती साधु होता है। प्रश्न - व्रत कितने और कौन-कौन से होते हैं। उत्तर - व्रत बारह होते हैं - पाँच अणुव्रत, तीन गुणव्रत और चार शिक्षाव्रत।
SR No.009716
Book TitleGyanpushpa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
PublisherTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
Publication Year
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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