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पदम लेश्या वाले जीव के लक्षण१. जो त्यागी और भद्र परिणामी होता है। २. जिसके निर्मल परिणाम रहते हैं। ३. निरंतर सत् कार्य करने में तत्पर रहता है । ४. साधु-गुरूजनों की सेवा पूजा में तत्पर रहता है । ५. अनेक अपराधों को क्षमा कर देता है, ऐसे परिणामों वाला जीव पद्म लेश्या वाला होता है । शुक्ल लेश्या वाले जीव के लक्षण१. जो पक्षपात नहीं करता और धर्म परायण होता है। २.सबके साथ समान व्यवहार करता है। ३. इष्ट-अनिष्ट विषयों में राग-द्वेष नहीं करता। ४. स्त्री, पुरुष, मित्र आदि में मोहित नहीं होता। ५.परमात्म स्वरूप की निरंतर भावना भाता है, ऐसे परिणामों वाला जीव शुक्ल लेश्या वाला होता है। अशुभ और शुभ लेश्या होने का कारण - छह लेश्याओं में प्रथम तीन कृष्ण, नील और कापोत अशुभ लेश्या हैं जो क्रमशः तीव्रतम, तीव्रतर
और तीव्र कषाय के उदय में होती हैं तथा पीत, पद्म और शुक्ल यह तीन शुभ लेश्या हैं जो क्रमशः मंद, मंदतर और मंदतम कषाय के उदय में होती हैं। षट् लेश्याओं के वर्ण अर्थात् रंग१. कृष्ण लेश्या का रंग कौए के समान काला होता है। २. नील लेश्या का रंग नीलकण्ठ के समान नीला होता है। ३. कापोत लेश्या का रंग कबूतर के समान होता है। ४.पीत लेश्या का रंग स्वर्ण के समान पीला होता है। ५. पद्म लेश्या का रंग कमल के समान गुलाबी होता है। ६.शुक्ल लेश्या का रंग शंख के समान धवल होता है। लेश्याओं को समझने के लिए उदाहरणछह पथिक (राहगीर) कहीं जा रहे थे, मार्ग में उन्होंने पके आमों से लदा हुआ वृक्ष देखा और आम खाने का विचार करके वृक्ष के नीचे पहुंचे । उन छह व्यक्तियों को छह लेश्याओं के अनुसार भिन्न-भिन्न विचार मन में उठते हैं - पहला व्यक्ति कृष्ण लेश्या वाला वृक्ष को जड़ से काटकर गिराना चाहता है। दूसरा व्यक्ति नील लेश्या वाला बड़ी शाखाओं को काटकर गिराना चाहता है। तीसरा व्यक्ति कापोत लेश्या वाला फल वाली छोटी डालियाँ गिराना चाहता है। चौथा व्यक्ति पीत लेश्या वाला डालियाँ नहीं काटना चाहता बल्कि सम्पूर्ण फलों को गिराना चाहता है। पाँचवां व्यक्ति पद्म लेश्या वाला मात्र पके फलों को तोड़कर खाना चाहता है और छटवां व्यक्ति शुक्ल लेश्या वाला वृक्ष को किसी भी प्रकार की हानि पहुँचाये बिना जमीन पर गिरे हुए फलों को खाने का विचार करता है। जिस तरह इन छह राहगीरों के भिन्न-भिन्न परिणाम हैं, उसी प्रकार छह लेश्याओं से युक्त नाना जीवों के परिणाम और स्वभाव भिन्न-भिन्न होते हैं। लेश्याओं से प्राप्त होने वाली गति१. 'कृष्णाये जाइ नरयं' कृष्ण लेश्या वाला जीव नरक गति में जाता है। २. 'नीलाए थावरो होइ'नील लेश्या वाला जीव स्थावर पर्याय को प्राप्त होता है। ३. कापोतये तिर्यंच योनिः' कापोत लेश्या वाला जीव तिर्यंच गति में जाता है। ४. 'पीताए मानुषो होई पीत लेश्या वाला जीव मनुष्य होता है। ५. 'पम्माए देव लोयंमि' पद्म लेश्या वाला जीव देव गति में जाता है।