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________________ पाठ ૧ षट् लेश्या दर्शन लेश्या की परिभाषा - १. कषाय से अनुरंजित योग प्रवृत्ति को लेश्या कहते हैं। २. जिसके द्वारा जीव अपने को पुण्य-पाप से लिप्त करता है उसे लेश्या कहते हैं । लेश्या के भेद लेश्या के मूल दो भेद हैं - द्रव्य लेश्या और भाव लेश्या तथा उत्तर भेद छह हैं - कृष्ण लेश्या, नील लेश्या, कापोत लेश्या, पीत लेश्या, पद्म लेश्या और शुक्ल लेश्या । द्रव्य लेश्या और भाव लेश्या का लक्षण - शरीर के वर्ण (रंग) को द्रव्य लेश्या कहते हैं तथा जीव के आंतरिक परिणामों को भाव लेश्या कहते हैं। लेश्या के छह भेद होने का कारण - कषाय का उदय अनेक प्रकार का होता है, उनमें तीव्रतम, तीव्रतर, तीव्र, मंद, मंदतर, मंदतम कषाय परिणाम होने से लेश्या के कृष्ण, नील, कापोत, पीत, पद्म, शुक्ल यह छह भेद होते हैं। कृष्ण लेश्या वाले जीव के लक्षण १०७ १. जो तीव्र क्रोधी हो । २. बैर न छोड़ता हो । ३. लड़ना जिसका स्वभाव हो । ४. धर्म और दया से रहित हो। ५. दुष्ट प्रकृति का हो। ६. किसी के वश में न आता हो, ऐसे परिणामों वाला जीव कृष्ण लेश्या वाला होता है । नील लेश्या वाले जीव के लक्षण - - १. जो काम करने में मंद हो । २. वर्तमान कार्य में विवेक रहित हो । ३. कला चातुर्य से रहित हो । ४. पाँच इन्द्रियों के विषयों में लम्पट हो। ५. मानी, मायाचारी और आलसी हो। ६. भीरू और अति सोने वाला हो । ७. दूसरों को ठगने में अति चतुर हो । ८. धन और धान्य के विषय में तीव्र लालसा हो। ऐसे परिणामों वाला जीव नील लेश्या वाला होता है। कापोत लेश्या वाले जीव के लक्षण - १. जो दूसरों पर क्रोध करता है और दोष लगाता है । २. शोक और भय से व्याप्त रहता है । ३. दूसरों की निंदा करता है और अनेक प्रकार से दूसरों को दुःख देता है। ४. दूसरों का तिरस्कार करता है । ५. अपनी बहुत प्रशंसा करता है और दूसरों पर विश्वास नहीं करता । ६. प्रशंसा करने वाले पर प्रसन्न होता है फिर हानि-लाभ की भी परवाह नहीं करता। ७. प्रशंसा स्तुति करने वाले पर धन लुटा देता है । ८. युद्ध में मरने के लिए तैयार रहता है, कार्य अकार्य को नहीं जानता, ऐसे परिणामों वाला जीव कापोत लेश्या वाला होता है। पीत लेश्या वाले जीव के लक्षण १. जो कार्य अकार्य को और सेव्य असेव्य को जानता है। २. सबसे समान व्यवहार एवं प्रीति भाव रखता है। ३. लाभ हानि में समभाव रखता है, संतोषी रहता है। ४. करुणा भाव युक्त, कोमल परिणामी होता है । ५. दया दान में तत्पर रहता है, ऐसे परिणामों वाला जीव पीत लेश्या वाला होता है। - -
SR No.009716
Book TitleGyanpushpa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
PublisherTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
Publication Year
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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