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________________ आचार्य तारण स्वामी कृत ग्रंथों में सम्यग्ज्ञान न्यानमयं अप्पानं, न्यानं तिलोय सयल संजुत्तं । अन्यान तिमिर हरनं न्यान उदेसं च सयल विलयमि ॥ १०६ अर्थ - आत्मा ज्ञान मय है। ज्ञान तीनों लोक के समस्त पदार्थों को जानने की सामर्थ्य से संयुक्त है। अज्ञान अंधकार को दूर करने वाला है। ऐसे सम्यग्ज्ञान के प्रगट होने पर समस्त विकार क्षय हो जाते हैं। (श्री ज्ञान समुच्चय सार जी, गाथा - २५७ ) न्यानं तिलोय सारं, न्यानं दंसेइ दंसनं मग्गं । जानदि लोयपमानं, न्यान सहावेन सुद्धमप्पानं ॥ अर्थ 1- सम्यग्ज्ञान तीन लोक में सारभूत है। अपने शुद्धात्म स्वरूप, ज्ञान स्वभाव के आश्रय पूर्वक सम्यग्ज्ञान, दर्शन (निर्विकल्प स्वरूप में लीनता) के मार्ग को दर्शाता है अर्थात् प्रगट करता है और लोक प्रमाण को जानता है । ( श्री ज्ञान समुच्चय सार जी, गाथा - २५८ ) न्यानं तत्वानि वेदंते, सुद्ध तत्व प्रकासकं । सुद्धात्मा तिअर्थ सुद्धं, न्यानं न्यान प्रयोजनं ॥ अर्थ - ज्ञान तत्त्वों का वेदन करता है, स्व-पर को यथार्थ जानता है, शुद्ध तत्त्व का प्रकाशक है । शुद्धात्मा रत्नत्रय मयी शुद्ध है ऐसा जानना ही ज्ञान का प्रयोजन है। ( श्री श्रावकाचार जी, गाथा - २५० ) न्यानं न्यान सरूवं जानवि पिच्छे सुद्धमप्पानं । अप्पा सुद्धप्पानं परमप्पा न्यान संजुत्तं ॥ अर्थ - अपने ज्ञान स्वरूपी शुद्धात्मा को जो जानता पहिचानता है, अनुभव करता है वही ज्ञान सम्यग्ज्ञान है । यह ज्ञान आत्मा को शुद्धात्मा परमात्मा जानता है, स्वभाव के बोध से संयुक्त रहता है । ( श्री ज्ञान समुच्चय सार जी, गाथा - २५९ ) न्यान बलेन जीवो, अप्पा सुद्धप्प हवेइ परमप्पा । न्यान सहावं जानदि, मुक्ति पंथ सिद्धि ससरूवं ॥ अर्थ - सम्यग्ज्ञान के बल से जीव आत्मा शुद्धात्मा को जानता हुआ परमात्मा होता है। सम्यग्ज्ञान अपने स्व स्वरूप ज्ञान स्वभाव को जानता है यही सिद्धि और मुक्ति को प्राप्त करने का मार्ग है। ( श्री ज्ञान समुच्चय सार जी, गाथा - २६०) म्यानेन न्यानमालंबं पंच दीप्ति प्रस्थितं । उत्पन्नं केवलं न्यानं, सुद्धं सुद्ध दिस्टितं ॥ अर्थ- शुद्ध दृष्टि जीव निश्चय से सम्यग्ज्ञान के द्वारा ज्ञान स्वभाव का आलम्बन लेकर पंच ज्ञान मयी ज्योति स्वरूप में स्थित होता है और स्वभाव में लीन होने से उसे केवलज्ञान प्रगट हो जाता है। ( श्री श्रावकाचार जी, गाथा - २५१ )
SR No.009716
Book TitleGyanpushpa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
PublisherTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
Publication Year
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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