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प्रश्न १- यथार्थ पूजा विधि के संबंध में २८वीं गाथा में सार सूत्र क्या है? उत्तर - १. शुद्ध दृष्टि से निज स्वरूप को देखना। २. ज्ञानमयी ध्रुव स्वभाव की साधना करना।
३. शुद्ध तत्त्व की आराधना करना । यथार्थ पूजा की विधि है। प्रश्न २- शुद्ध दृष्टि का पूजा से क्या संबंध है? उत्तर - ज्ञानी की दृष्टि अपने ज्ञानमयी ध्रुव स्वभाव पर स्थिर रहती है। जिससे ज्ञान का स्व-पर
प्रकाशकपना स्वभाव रूप परिणत होकर शुद्धात्म तत्त्व की आराधना में लीन हो जाता है। यही शुद्धोपयोग की स्थिति है जो वन्दना पूजा की वास्तविक विधि है, इसी से परमात्म पद प्रगट होता है।
गाथा-२९
चार संघ को शरणभूत निज शुद्धात्मा संघस्य चत्रु संघस्य, भावना सुद्धात्मनं ।
समय सरनस्य सुद्धस्य, जिन उक्तं साधं धुवं ॥ अन्वयार्थ - (संघस्य) श्री संघ के भव्य जीवो ! (सुद्धात्मनं) शुद्धात्मा की (भावना) भावना भाओ (साधं धुर्व) ध्रुव स्वभाव की साधना करो (चत्र) चारों (संघस्य) संघ के जीवों को (सुद्धस्य समय) शुद्ध स्वरूप मय शुद्धात्मा (सरनस्य) शरण भूत है (जिन उक्त) जिनेन्द्र भगवान की यही दिव्य देशना
अर्थ - श्री संघ के हे भव्य जीवो ! शुद्धात्म स्वरूप की निरंतर भावना भाओ । अविनाशी ध्रुव स्वभाव की साधना करो, यही साध्य आराध्य इष्ट और प्रयोजनीय है। मुनि, आर्यिका, श्रावक, श्राविका चारों संघ के जीवों को शुद्ध स्वरूपी शुद्धात्मा ही शरणभूत है, श्री जिनेन्द्र भगवान का यही दिव्य संदेश है। प्रश्न १- जिनवाणी में मोक्षमार्ग का कथन किस प्रकार किया गया है? उत्तर - जिनवाणी में मोक्षमार्ग का कथन दो प्रकार से किया गया है। अखंड आत्म स्वभाव के अवलम्बन
से सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र के भेद रूप मोक्षमार्ग प्रगट होता है, वह व्यवहार मोक्षमार्ग है, इसे उपचार से साधन रूप मोक्षमार्ग कहा है। आत्मा में वीतराग भाव रूप जो यथार्थ मोक्षमार्ग प्रगट होता है वह निश्चय मोक्षमार्ग है, इस
प्रकार जिनवाणी में दो प्रकार से मोक्षमार्ग का कथन किया गया है। प्रश्न २- मुनि धर्म क्या है, और चार संघ के जीव क्या करते हैं? उत्तर - मुनि धर्म शुद्धोपयोग रूप है । जो आत्मज्ञान पूर्वक स्वभाव की साधना करते हैं, आत्मा में
लीन होते हैं, वह सच्चे साधु हैं। मुनि, आर्यिका, श्रावक, श्राविका, चारों संघ के जीव निरंतर शुद्धात्म स्वरूप की भावना भाते हैं।