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________________ भावना में (अस्थिर) स्थिर होकर (पूजा आचरन) पूजा के आचरण से (संजुतं) संयुक्त रहता है। अर्थ- जिस जीव के हृदय में शुद्ध सम्यग्दर्शन प्रगट हुआ है, जिसने अपने आत्म स्वरूप का निश्चय श्रद्धान किया है, स्वानुभूति से सम्पन्न ऐसा सम्यकदृष्टि ज्ञानी सच्चा दाता होता है, शुद्ध दान देता है और शुद्ध भावना में स्थिर होकर सम्यक् पूजा के आचरण से संयुक्त रहता है। प्रश्न १- व्यवहार से दान का क्या स्वरूप है ? उत्तर - सम्यक्दृष्टि श्रावक पात्र जीवों को आहार दान, ज्ञान दान, औषधिज्ञान और अभयदान देता है यह व्यवहार दान है जो स्वर्ग आदि सद्गति की प्राप्ति कराता है, पुण्य बंध का कारण है। प्रश्न २- निश्चय दान का क्या स्वरूप है ? उत्तर - ज्ञानी साधक अपना उपयोग अपने स्वभाव में लगाता है यह निश्चय दान है। प्रश्न ३- निश्चय से आहार दान क्या है? उत्तर - अपने आत्मा को ममल स्वभाव के अनुभव से संतुष्ट करना आहारदान है। प्रश्न ४- निश्चय से औषधि दान क्या है? उत्तर - अपनी आत्मा को जन्म-मरण के रोग से छुड़ाने के लिये भेदज्ञान तत्त्वनिर्णय की औषधि देना औषधिदान है। प्रश्न ५- निश्चय से ज्ञान दान क्या है? उत्तर - अपने आत्मा को ज्ञान रूप अनुभव करना, ज्ञायक रहना, केवलज्ञान की ओर अग्रसर होना ज्ञानदान है। प्रश्न ६- निश्चय से अभय दान क्या है? उत्तर - अपनी आत्मा को मोह रागादि परिणामों के निमित्त से होने वाले भय से मुक्त रखना अभयदान है। प्रश्न ७- निश्चय दान का क्या फल है ? उत्तर - ज्ञानी साधक निश्चय दान देता है। इस दान के प्रभाव से मुक्ति की प्राप्ति होती है। गाथा-२८ वंदना पूजा की यथार्थ विधि सुद्ध दिस्टी च दिस्टंते, साधं न्यान मयं धुवं । सुद्ध तत्वं च आराध्य, वन्दना पूजा विधीयते ॥ अन्वयार्थ - [ज्ञानी] (सुद्ध दिस्टी) शुद्ध दृष्टि से (दिस्टते) देखते हैं (न्यान मर्य) ज्ञान मयी (धुर्व) ध्रुव स्वभाव की (साध) साधना करते हैं (च) और (सुद्ध तत्वं च) शुद्ध तत्त्व की (आराध्य) आराधना करते हैं [यही] (वन्दना पूजा) वन्दना पूजा की (विधीयते) यथार्थ विधि है। अर्थ- आत्मार्थी सम्यक्दृष्टि ज्ञानी पुरुष शुद्ध दृष्टि से अपने आत्म स्वरूप को देखते हैं, अरिहंत सिद्ध परमात्मा के समान अपने ज्ञानमयी ध्रुव स्वभाव की साधना करते हैं, शुद्धात्म तत्त्व की आराधना करते हैं, यही वन्दना पूजा की यथार्थ विधि है।
SR No.009716
Book TitleGyanpushpa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
PublisherTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
Publication Year
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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