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गाथा - १६
ज्ञानी धारण करता है आध्यात्मिक वस्त्राभूषण
वस्त्रं च धर्म सद्भावं आभरनं रत्नत्रयं ।
मुद्रिका सम मुद्रस्य मुकुटं न्यान मयं धुवं ॥
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अन्वयार्थ – [ सम्यग्दृष्टि ज्ञानी] ( सद्भावं ) [ शुद्ध] स्वभाव मयी (धर्म) धर्म के (वस्त्रं) वस्त्र (रत्नत्रयं) रत्नत्रय के (आभरनं) आभरण (सम) समता मयी (मुद्रस्य) मुद्रा की (मुद्रिका) अंगूठी (च) और (न्यान मयं ज्ञानमयी (धुवं) ध्रुव स्वभाव का (मुकुट) मुकुट धारण करता है।
अर्थ सम्यदृष्टि ज्ञानी शुद्ध स्वभावमयी धर्म के वस्त्र पहिनता है, सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान सम्यक्चारित्र स्वरूप रत्नत्रय के आभरण, समतामयी मुद्रा की मुद्रिका और ज्ञानमयी ध्रुव स्वभाव का मुकुट धारण करता है, इस प्रकार आध्यात्मिक वस्त्राभूषणों को धारण करके शुद्धात्म देव का दर्शन करने के लिये तैयार होता है ।
प्रश्न १- ज्ञानी आध्यात्मिक वस्त्राभूषणों से किस प्रकार सुसज्जित होता है ?
उत्तर
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शुद्धात्मा अशुद्धि से निर्लिप्त है। मिथ्यात्व शल्य आदि अशुद्धि तो पर्याय में है। अतः ज्ञानीजन पर्याय की इसी अशुद्धि के प्रक्षालन हेतु ज्ञान स्नान, ध्यान करते हैं ।
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प्रश्न २ - अंतरशोधन द्वारा प्रगट हुई दशा को बनाये रखने का क्या उपाय है ?
उत्तर
प्रश्न ४उत्तर
ज्ञानी शुद्ध स्वभाव मयी धर्म के वस्त्रों को धारण करता है। रत्नत्रय के अनुपम आभरण से संयुक्त होकर अवर्णनीय शोभा को प्राप्त होता है तथा अतीन्द्रिय आनन्द में डूबता हुआ, ध्रुव स्वभाव में रमण करने को सदा उत्साहित रहता है।
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साधु पद पर प्रतिष्ठित होकर ज्ञानी वीतराग दशा रूप समता मयी मुद्रा की मुद्रिका अर्थात् अंगूठी धारण करता है। उसे कुछ भी अच्छा-बुरा नहीं लगता, समभाव में रहता है। समस्त आभरण और आभूषणों सहित ज्ञानी ज्ञान मयी ध्रुव स्वभाव का मुकुट धारण करता है।
अंतरशोधन द्वारा जब पर्याय में शुद्धि प्रगट होती है, तब आत्म स्वरूप में लीनता रूप पुरुषार्थ होता है वहाँ बाह्य दशा सहज होती है।
जैसे जैसे आत्मलीनता प्रगाढ़ होती है वैसे वैसे स्वरूप स्थिरता भी बढ़ती जाती है। अतः
आत्मलीनता और एकाग्रता ही प्रगट हुई दशा को बनाये रखने का उपाय है।
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प्रश्न ३ - वस्त्र, आभरण और आभूषण क्या होते हैं ?
उत्तर
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सामान्यतया जो कपड़े धोती, कुर्ता आदि पहने जाते हैं उन्हें वस्त्र कहते हैं । वस्त्रों के ऊपर, जैकेट, जरसी, कोट आदि पहने जाते हैं उन्हें आभरण कहते हैं । अंगूठी, हार, चैन, मुकुट आदि को आभूषण कहते हैं।
ज्ञानी ने परमात्मा के दर्शन के लिये क्या तैयारी की है ?
ज्ञानी ने शुद्ध स्वभाव रूप धर्म के वस्त्र और रत्नत्रय के आभरण धारण किये हैं। समता भाव मयी जिन मुद्रा रूप मुद्रिका तथा ज्ञानमयी ध्रुव स्वभाव का मुकुट धारण कर मुक्ति श्री से मिलने, परमात्मा का दर्शन करने के लिये तैयार हुआ है ।