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अन्वयार्थ - (पंडिता) सम्यक्दृष्टि ज्ञानी ( सुद्धात्मा) शुद्धात्म स्वरूप (चेतना) चैतन्य मयी स्वभाव को (सुद्ध दिस्टि) शुद्ध दृष्टि से (धुवं) ध्रुव स्वभाव ( समं) मय होकर ( नित्वं) नित्य अनुभवते हुए (सुद्ध भाव) शुद्ध भाव में (अस्थरी भूतं) स्थिर होकर (न्यानं अस्नान) ज्ञान स्नान करते हैं।
अर्थ - आत्मज्ञ पुरुष ज्ञानी पंडित चैतन्यमयी शुद्धात्म स्वरूप को शुद्ध दृष्टि से ध्रुव स्वभावमय नित्य अनुभव करते हुए शुद्ध भाव में स्थिर होकर ज्ञान स्नान करते हैं। निर्मल श्रद्धान और सम्यग्ज्ञान के बल से शुद्ध भाव में रहना ही सच्चा पुरुषार्थ है ।
प्रश्न १- शुद्ध भाव में स्थिर होकर ज्ञान स्नान का क्या अर्थ है ?
उत्तर
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गाथा - १२
शुद्ध भाव में स्थिर होकर ज्ञान स्नान
सुद्धात्मा चेतना नित्वं, सुद्ध दिस्टि समं धुवं । सुद्ध भाव अस्थरी भूतं न्यानं अस्नान पंडिता ॥
प्रश्न २- ज्ञानी शुद्ध भाव में स्थिर होने की साधना किस प्रकार करते हैं ?
उत्तर -
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स्वरूप में लीन होने पर बुद्धिपूर्वक राग का अभाव होना शुद्धोपयोग है। ज्ञानानन्द स्वभाव के आश्रय से ज्ञान में एकाग्रता होने पर सहज शुद्धोपयोग हो जाता है। शुद्ध भाव में स्थिर होना यही ज्ञानी का ज्ञान स्नान है।
सम्यक्दृष्टि ज्ञानी जानते हैं कि मैं निर्मल ज्ञानमयी चैतन्य स्वरूप शुद्धात्मा हूँ। इसी अनुभूति के बल पर वे अपने शुद्ध स्वभाव में ठहरने का पुरुषार्थ करते हैं। ज्ञानी की यही शुद्ध भाव में स्थिर होने की साधना है ।
प्रश्न ३
ज्ञान की क्या महिमा है ?
उत्तर ज्ञान ज्ञायक से उत्पन्न होता है। जब ज्ञान ज्ञायक की विराधना करता है तब घटता है। जब
ज्ञान ज्ञायक की आराधना करता है तब बढ़ता है। जब ज्ञान ज्ञायक का आश्रय लेता है तब सम्यग्ज्ञान होता है। जब ज्ञान, ज्ञान में समा जाता है तब केवलज्ञान होता है।
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गाथा - १३
ज्ञानी करते हैं मिथ्यात्व आदि का प्रक्षालन
प्रषालितं त्रिति मिथ्यातं, सल्यं त्रियं निकंदनं ।
कुन्यानं राग दोषं च, प्रषालितं असुह भावना ॥
अन्वयार्थ (त्रिति ) तीन प्रकार के (मिथ्यातं) मिथ्यात्व को (प्रचालितं) प्रक्षालित कर देता है
(त्रियं) तीन प्रकार की (सल्यं) शल्यों को (निकंदनं) दूर कर देता है, निर्मूल कर देता है (च) और (कुन्यानं) कुज्ञान (राग दोष) राग द्वेष आदि (असुह) अशुभ (भावना) भावनाओं को [भी] (प्रषालितं) प्रक्षालित कर देता है ।
अर्थ - सम्यक्दृष्टि ज्ञानी ज्ञान स्नान करके, मिथ्यात्व, सम्यक् मिथ्यात्व और सम्यक् प्रकृति मिथ्यात्व इन तीन प्रकार के मिथ्यात्व को प्रक्षालित कर देता है। मिथ्या, माया, निदान इन तीन प्रकार की शल्यों को दूर कर देता है। कुज्ञान, राग-द्वेष आदि अशुभ भावनाओं को भी प्रक्षालित कर देता है।