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प्रश्न ३- विकल्पों का अभाव किस प्रकार होता है? उत्तर - जैसे नदी में गोता लगाने पर बाहर का, पर का भान नहीं रहता है, उसी प्रकार स्वभाव की ओर
उपयोग के अंतर्मुख होने पर समस्त विकल्प टूट जाते हैं।
गाथा- ११ ज्ञान सरोवर में गणधरों का स्नान और जलपान संमिक्तस्य जलं सुद्धं, संपूरनं सर पूरितं ।
अस्नानं पिवते गनधरन, न्यानं सर नंत धुवं ॥ अन्वयार्थ- (न्यानं सर) ज्ञान सरोवर (नंत) अनन्त है (धुर्व) ध्रुव है (संमिक्तस्य) सम्यक्त्व के (जलं सुद्ध) शुद्ध जल से (सर) यह सरोवर (सपूरन) पूरी तरह से (पूरित) भरा हुआ है (गनधरन) सम्यग्ज्ञानी गणधर [इसी सरोवर में (अस्नानं) स्नान करते हैं (पिवते) इसी का जलपान करते हैं।
अर्थ- ज्ञान रूपी सरोवर अनंत है, ध्रुव है, सम्यक्त्व के शुद्ध जल से यह सरोवर पूरी तरह से भरा हुआ है। आत्म स्वभाव संकल्प - विकल्प रहित है, निर्विकल्पता रूपी अनंत जल से परिपूर्ण है। सम्यग्ज्ञानी गणधर इसी में स्नान करते हैं और इसी का जलपान करते हैं। प्रश्न १- ज्ञानी गणधर कौन से सरोवर में स्नान करते हैं? उत्तर - सम्यक्त्व के निर्विकल्प शुद्ध जल से परिपूर्ण भरा हुआ अपना ध्रुव स्वभाव शुद्ध ज्ञानमयी
सरोवर है जो अनन्त ज्ञानादि गुणों का निधान है। मति, श्रुत, अवधि, मन:पर्यय इन चार ज्ञान के धारी गणधर देव जो केवलज्ञानी अरिहन्त भगवान की दिव्यध्वनि का विस्तार करते
हैं, वह इस ज्ञान सरोवर के जल में अवगाहन, स्नान करते हैं, इसी का जल पान करते हैं। प्रश्न २- ज्ञानी साधक संसार में कैसे रहते हैं? उत्तर - जिस समय ज्ञानी की परिणति बाहर दिखाई देती है, उसी समय उन्हें ज्ञायक स्वभाव भिन्न
दिखाई देता है। जैसे- किसी की पड़ोसी के साथ घनिष्ट मित्रता हो, उसके घर आता जाता हो परन्तु वह पड़ोसी को अपना नहीं मानता। उसी प्रकार ज्ञानी विभाव में कभी एकत्व रूप परिणमन नहीं
करते, ज्ञानी संसार में सदा कमल की भांति निर्लिप्त रहते हैं। प्रश्न ३- गणधर देव कहाँ निवास करते हैं उन्हें केवलज्ञान कैसे प्रगट होता है ? उत्तर - गणधर देव अतीन्द्रिय आनन्द स्वरूप ज्ञान सरोवर में निवास करते हैं। ज्ञान स्वरूप में एकाग्र
होते-होते वह पूर्ण वीतराग केवलज्ञान को प्राप्त करते हैं। केवलज्ञान होने से उन्हें ज्ञान की अगाध शक्ति प्रगट हो जाती है।