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गाथा - ८
सम्यक्दृष्टि ज्ञानी का तिअर्थ जल स्नान
अन्वयार्थ
देवं गुरुं सुतं वन्दे, धर्म सुद्धं च विन्दते । तिअर्थ अर्थ लोकं च अस्नानं च सुद्धं जलं ॥ (देवं) सम्यकदृष्टि ज्ञानी सच्चे देव (गुरु) सच्चे गुरू (खुतं) सच्चे शास्त्र की (वन्दे ) वन्दना करता है (च) और (धर्म सुद्धं च) शुद्ध धर्म का (विन्दते) अनुभव करता है (च) और (लोकं ) इस लोक में (अर्थ) प्रयोजनीय (तिअर्थ) रत्नत्रय के (सुद्धं जलं ) शुद्ध जल में (अस्नानं ) स्नान करता है ।
अर्थ सम्यकदृष्टि ज्ञानी सच्चे देव, गुरू, शास्त्र की वन्दना करता है और शुद्ध धर्म का अनुभव करता है, इस विधि से वह ज्ञानी लोक में प्रयोजनीय रत्नत्रय के शुद्ध जल में स्नान करता है अर्थात् शुद्धात्म स्वरूप की आराधना में निरंतर संलग्न रहता है।
प्रश्न १- " देवं गुरुं सुतं वन्दे " इस गाथा का अभिप्राय स्पष्ट कीजिये ?
उत्तर
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प्रश्न २- तिअर्थ के शुद्ध जल में स्नान करने से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर
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शुद्धात्म स्वरूप ही सच्चा देव गुरू शास्त्र है, ज्ञानी पंडित उसकी वंदना करता हुआ अपने शुद्ध स्वभाव रूप धर्म की अनुभूति करता है।
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प्रश्न ३ तिअर्थ के शुद्ध जल में ज्ञानी किस प्रकार स्नान करता है ?
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उत्तर
लौकिक व्यवहार में अशुद्धता को दूर करने के लिये जल से स्नान किया जाता है। स्नान करने से शुद्धता और शान्ति का अनुभव होता है। यहाँ अन्तर शोधन के लक्ष्य पूर्वक शुद्ध स्वभाव की उपलब्धि के लिये ज्ञानी रत्नत्रयमयी शुद्ध जल में स्नान करता है। वह अपने पूर्णानन्द स्वरूप की अनुभूति में डुबकी लगाता है।
है। वह रत्नत्रयमयी अभेद स्वभाव की के शुद्ध जल में स्नान करता है। (नोट कमल बत्तीसी जी ग्रन्थ की गाथा
भेदज्ञान तत्त्व निर्णय पूर्वक सम्यक्रदृष्टि ज्ञानी अपने स्वरूप का निर्णय और अनुभव करता है । वह अपने शुद्ध स्वरूप के आश्रय से रागादि भावों से परे होता है। नय पक्ष के भेद मिटाता अनुभूति में डुबकी लगाता है। इस प्रकार ज्ञानी तिअर्थ तिअर्थ का अभिप्राय जानने के लिए अध्याय ३ में श्री १० एवं अध्याय २ में पाठ २ पंचार्थ देखें।)
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गाथा ९
ज्ञानी का ध्यान में शुद्ध ज्ञान जल से स्नान
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चेतना लभ्यनो धर्मो चेतयन्ति सदा बुधै । ध्यानस्य जलं सुद्ध, न्यानं अस्नान पंडिता ॥
अन्वयार्थ - (बुधै) ज्ञानीजन [आत्मा के ] ( चेतना लक्ष्यनो) चैतन्य लक्षण (धर्मो) धर्म का (सदा) सदा, हमेशा (चेतयन्ति) अनुभव करते हैं (और) (ध्यानस्य) ध्यान में स्थित होकर (न्यानं) ज्ञान के (जलं सुद्ध) शुद्ध जल में (अस्नान) स्नान करते हैं [वही] (पंडिता) पण्डित हैं अर्थात् सम्यकृदृष्टि ज्ञानी हैं।