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________________ श्री मालारोहण जी गाथा-३१ प्रबल पुरुषार्थी योगी देखते हैं आत्मा प्रकाशमान जे सुद्ध बुद्धस्य गुन सस्वरूपं, रागादिदोष मल पंज तिक्तं । धर्म प्रकासं मुक्ति प्रवेसं, ते माल दिस्टं हृिदै कंठ रुलितं ॥ अन्वयार्थ - (जे) जो (सुद्ध बुद्धस्य) शुद्ध बुद्ध (गुन) गुणों मयी (सस्वरूप) सत् स्वरूप में [लीन होते हैं] (रागादि दोष) रागादि दोषों के (मल पुंज) मल समूह का (तिक्तं) त्याग कर देते हैं (ते) वे ज्ञानी (धर्म) धर्म का (प्रकास) प्रकाश करते हैं (मुक्ति ) मुक्ति में (प्रवेस) प्रवेश करते हैं [और (माल) ज्ञान गुण माला को (हिद कठ) हृदय कंठ में (रुलित) झूलती हुई (दिस्ट) देखते हैं । अर्थ- सम्पूर्ण पुरुषार्थ के बल से जो मोक्षार्थी साधक वीतरागी ज्ञानी शुद्ध बुद्ध गुणोंमयी सत्स्वरूप में लीन होते हैं, रागादि दोषों के मल समूह का त्याग करते हैं, वे आत्मज्ञ सत्पुरुष आत्म धर्म को प्रकाशित करते हुए मुक्ति में प्रवेश करते हैं और ज्ञान गुणमाला को अपने हृदय कंठ में झुलती हुई देखते हैं अर्थात् अपने शुद्धात्म स्वरूप के निर्विकल्प स्वानुभव में निरंतर तल्लीन रहते हैं। प्रश्न १- प्रबल पुरुषार्थी ज्ञानी किस प्रकार मुक्ति की ओर अग्रसर होते हैं? उत्तर - जो शुद्ध दृष्टि ज्ञानी प्रबल पुरुषार्थी हैं वे शुद्ध ज्ञान गुणों मयी निज शुद्धात्म तत्त्व के आश्रय से समस्त रागादि दोषों के मल समूह को त्याग देते हैं। वे ज्ञानी कर्मों से रहित शुद्ध चैतन्य स्वभाव को प्रकाशित कर स्वभाव लीनता पूर्वक मुक्ति में प्रवेश करते हैं, सिद्ध पद पाते हैं। अनन्त काल तक ज्ञानादि गुणों मयी अभेद शुद्ध समयसार को स्व संवेदन में प्रत्यक्ष झूलता हुआ देखते हैं, परमानन्द में लीन रहते हैं। प्रश्न २- ज्ञानी की क्या विशेषता है? उत्तर - ज्ञानी, पर को ग्रहण नहीं करता । स्वयं में परिपूर्ण परमात्म स्वरूप को देखता है। शुद्ध स्वभाव के आश्रय से ज्ञायक रहता हुआ, विज्ञानघन आत्मा का अनुभव करता है। गाथा-३२ सम्यक्त्व की महिमा जे सिद्ध नंतं मुक्ति प्रवेसं, सुद्धं सरूपं गुन माल ग्रहितं । जे केवि भव्यात्म संमिक्त सुद्धं, ते जांति मोष्यं कथितं जिनेन्द्रं ॥ अन्वयार्थ - (जे) जो (नंत) अनन्त (सिद्ध) सिद्ध परमात्मा (मुक्ति प्रवेस) मुक्ति को प्राप्त हुए हैं [उन्होंने] (सुद्धं सरूप) शुद्ध स्वरूपी (गुन माल) ज्ञान गुण माला को (ग्रहितं) ग्रहण किया है (जे) जो (के वि) कोई भी (भव्यात्म) भव्यात्मा, भव्य जीव (संमिक्त) सम्यक्त्व से (सुद्ध) शुद्ध होंगे (ते) वे (मोष्यं) मुक्ति को, मोक्ष को (जांति) जायेंगे, प्राप्त करेंगे (कथितं जिनेन्द्र) जिनेन्द्र भगवन्तों का ऐसा दिव्य संदेश है। अर्थ- संसार के अनादिकालीन पंच परावर्तन से मुक्त होकर जिन अनन्त भव्यात्माओं ने मुक्ति को प्राप्त किया है, उन्होंने शुद्ध स्वरूपी ज्ञान गुणमाला अर्थात् निज शुद्धात्मानुभूति को ग्रहण किया है। जो
SR No.009715
Book TitleGyanodaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
PublisherTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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