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श्री मालारोहण जी
प्रश्न २उत्तर
अन्वयार्थ - (अन्या) [जो ज्ञानी] आज्ञा सम्यक्त्व (सु वेदं) वेदक सम्यक्त्व (उवसम) उपशम सम्यक्त्व (घ्यायिकं ) क्षायिक सम्यक्त्व (सुद्ध) शुद्ध सम्यक्त्व के (धरेत्वं ) धारी हैं (जिन उक्त) जिनेन्द्र भगवान के वचनानुसार (सार्धं) स्वरूप साधना करते हैं (त्रिभेदं) तीन प्रकार के (मिथ्या) मिथ्यात्व और (मल राग) रागादि दोषों को (बंड) खण्ड-खण्ड करते हैं (ते) वे निर्मल श्रद्धानी (माल) ज्ञान गुण माला को (ह्रिदै कंठ) हृदय कंठ में (रुलितं) झूलती हुई (दिस्टं) देखते हैं।
अर्थ- जो मोक्षमार्गी साधक आज्ञा, वेदक, उपशम, क्षायिक अथवा शुद्ध सम्यक्त्व के धारी हैं, जिनेन्द्र भगवान के वचनों पर श्रद्धान पूर्वक अपने शुद्धात्म स्वरूप की साधना करते हैं। तीन प्रकार के मिथ्यात्व और रागादि दोषों को खण्ड-खण्ड कर देते हैं, वे निर्मल श्रद्धानी आत्मज्ञानी साधक ज्ञान गुणमाला को हृदय कंठ में झुलती हुई देखते हैं ।
प्रश्न १- शुद्धात्म स्वरूप के दर्शन के लिये कौन सा सम्यक्त्व होना चाहिये ?
उत्तर
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गाथा - २९
निर्मल श्रद्धान में दिखती है ज्ञान गुण माला
अन्या सु वेदं उवसम धरेत्वं ष्यायिकं सुद्धं जिन उक्त सार्धं । मिथ्या त्रिभेदं मल राग बंडं, ते माल दिस्टं हिदै कंठ रुलितं ॥
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जिन्हें शुद्धात्म स्वरूप की श्रद्धा अनुभूति होती है, ऐसे साधक आज्ञा, वेदक, उपशम, क्षायिक या शुद्ध किसी भी सम्यक्त्व को धारण करते हैं तथा जिन वचनों के श्रद्धान सहित स्वभाव साधना में रत रहते हैं सम्यक्त्व पूर्वक ही जीव का मोक्षमार्ग प्रशस्त होता है; अतः शुद्धात्म स्वरूप का दर्शन करने के लिये आज्ञा, वेदक, उपशम, क्षायिक और शुद्ध सम्यक्त्व में से कोई भी सम्यक्त्व होना चाहिये ।
सम्यक्त्व के यह भेद किस अपेक्षा से हैं ?
साधना की अपेक्षा सम्यक्त्व के यह पाँच भेद हैं- (१) आज्ञा सम्यक्त्व (२) वेदक सम्यक्त्व (३) उपशम सम्यक्त्व (४) क्षायिक सम्यक्त्व (५) शुद्ध सम्यक्त्व । इनमें से कोई सा भी सम्यक्त्व हो । विशेष बात यह है कि जिनेन्द्र परमात्मा के कहे अनुसार जिसे निज शुद्धात्मानुभूति हो, यही निश्चय सम्यग्दर्शन मुक्ति मार्ग में प्रयोजनीय है ।
प्रश्न ३ - सम्यक्त्व के पाँच भेदों का स्वरूप क्या है ?
उत्तर (१) आज्ञा सम्यक्त्व - देव, गुरू, शास्त्र की आज्ञानुसार जीवादि सात तत्त्वों का यथार्थ
श्रद्धान करना आज्ञा सम्यक्त्व है ।
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(२) वेदक सम्यक्त्व चार अनन्तानुबंधी कषाय, मिथ्यात्व और सम्यक्मथ्यात्व इन छह प्रकृतियों के उदयाभावी क्षय और इन्हीं के सवस्था रूप उपशम तथा देशघाती सम्यक्त्व प्रकृति के उदय में जो तत्त्वार्थ श्रद्धान होता है वह क्षायोपशमिक सम्यक्त्व है, इसी को वेदक सम्यक्त्व कहते हैं।
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(३) उपशम सम्यक्त्व - तीन मिथ्यात्व - १. मिथ्यात्व २. सम्यक् मिथ्यात्व ३. सम्यक् प्रकृति मिथ्यात्व | चार अनंतानुबंधी कषाय - १. क्रोध २. मान ३. माया ४. लोभ । इन सात प्रकृतियों के उपशम होने पर कीचड़ के नीचे बैठ जाने से निर्मल जल के समान पदार्थों का जो निर्मल श्रद्धान होता है वह उपशम सम्यक्त्व है।