________________
प्रश्न ५
उत्तर
७३
श्री मालारोहण जी
गाथा २४ से ३१ तक 'हृदय कंठ रुलितं' शब्द का विशेष प्रयोग हुआ है, इसका क्या अभिप्राय है ?
-
उत्तर
गाथा - २५
- -
संयमी उच्च पात्रता वाले साधकों को दिखती है जिनस्य उक्तं जे सुद्ध विस्टी, संभिक्तधारी बहुगुन समिद्धं । ते माल दिस्ट हिदे कंठ रुलितं मुक्ति प्रवेसं कथितं जिनेन्द्रं ॥
अन्वयार्थ - (जिनस्य उक्तं ) भगवान महावीर स्वामी ने कहा है कि (जे) जो (सुद्ध दिस्टी) शुद्ध दृष्टि (संभिक्तधारी) सम्यक्त्व के धारी (बहुगुन) बहुत गुणों से (समिद्धं) समृद्धवान हैं (ते) वे (माल) ज्ञान गुण माला को (हिदे कंठ) अपने हृदय कंठ में (रुलितं) झूलती हुई (विस्ट) देखते हैं ( मुक्ति प्रवेस ) मुक्ति में प्रवेश करते हैं [ ऐसा ) (जिनेन्द्र) जिनेन्द्र भगवन्तों ने (कथितं कथन किया है, निरूपण किया है।
श्रीमद् जिन तारण तरण मण्डलाचार्य जी महाराज वीतरागी ज्ञानी आत्म साधना में निरंतर संलग्न रहने वाले महापुरुष थे। उन्होंने अपनी आत्म साधना के अंतर्गत उपयोग को अंतरंग में स्थित कर, पाँच ज्ञान के स्थान निर्धारित कर साधना की थी। जैसे मति ज्ञान का स्थान कंठ में, श्रुत ज्ञान का स्थान हृदय में निर्धारित किया है। इस निर्देश के अनुसार 'हृदय कंठ में झूलती हुई देखते हैं' इसका अर्थ हुआ कि अपने मति श्रुत ज्ञान में स्वरूप का स्मरण रहता है। सम्यग्दृष्टि, व्रती श्रावक, महाव्रती साधु, श्रेणी पर चढ़ने वाले साधु आदि को अपनीअपनी पात्रतानुसार ज्ञान में अपना स्वभाव झलकता है। आत्मा की अनंतगुण माला को कंठहार बनाया यही 'हृदय कंठ रुलितं' का अभिप्राय है ।
-
-
अर्थ - भगवान महावीर स्वामी ने दिव्य संदेश में कहा- जो शुद्ध दृष्टि सम्यक्त्व के धारी बहुत गुणों से समृद्धवान हैं। वे ज्ञान गुणमाला को अपने हृदय कंठ में झुलती हुई देखते हैं, उन्हें अपने शुद्धात्म स्वरूप का बोध रहता है, वही ज्ञानी संसार से मुक्त होकर परम आनंदमयी मोक्ष पद को प्राप्त कर लेते हैं। प्रश्न १- बहुत गुणों से समृद्धवान का क्या अर्थ है, संयमी साधक किस प्रकार ज्ञान गुण माला
को देखते हैं ? उत्तर जो
'शुद्ध दृष्टि अपने ध्रुव स्वभाव की साधना करते हैं, जो सम्यक्त्व के धारी बहुत गुणों से समृद्धवान हैं। उनके अहिंसा उत्तम क्षमादि गुण प्रगट हो जाते हैं जिनकी पात्रता बढ़ जाती है अर्थात् पंचम आदि गुणस्थानों में संयम, तप मय जीवन बनाते हुए, निज स्वभाव की साधना आराधना में रत रहते हैं, वे सम्यदृष्टि ज्ञानी, ज्ञान मई ज्ञान गुणमाला को अपने हृदय कंठ अर्थात् स्व संवेदन में झूलती हुई देखते हैं। निज स्वभाव में लीन होकर मुक्ति में प्रवेश करते हैं ऐसा केवलज्ञानी जिनेन्द्र परमात्मा की दिव्य ध्वनि में निरूपण किया गया है । प्रश्न २ - राजा श्रेणिक भगवान महावीर स्वामी से पूछते हैं कि हे प्रभु ! क्षायिक सम्यक्त्व और
तीर्थकर प्रकृति का बंध होने पर भी मैं चारित्र दशा अंगीकार क्यों नहीं कर पा रहा हूं। इसका क्या कारण है ?
भगवान महावीर स्वामी कहते हैं कि हे राजा श्रेणिक ! तुम्हें दर्शन मोहनीय की तीन एवं
-
ज्ञान गुणमाला