SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 85
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री मालारोहण जी भावना है, मोक्ष की भावना नहीं है। राग को, पुण्य को धर्म मानने वाला जीव मिथ्यादृष्टि संसारी है। प्रश्न ३- रत्नत्रय मालिका के दर्शन हेतु भगवान का क्या उपदेश है? उत्तर - आत्मा अचिन्त्य सामर्थ्यवान है। इसमें अनन्त गुण हैं। यह रत्नत्रय मयी है अर्थात् परम सुख, परम शान्ति, परमानन्द का भंडार है। उसकी रुचि हुए बिना उपयोग पर से हटकर स्व में नहीं आ सकता। जिन जीवों को पाप भावों की रुचि है, उनका तो कहना ही क्या है ? परन्तु पुण्य की रुचि वाले भी बाह्य त्याग करें, तप करें, द्रव्यलिंग धारण करें परन्तु जब तक शुभ की रुचि है, तब तक उपयोग पर से हट कर स्वसन्मुख नहीं होता और यह रत्नत्रय मयी ज्ञान गुण माला भी प्राप्त नहीं हो सकती और न मोक्ष हो सकता। अभिप्राय यह है कि बिना शुद्ध दृष्टि (सम्यग्दर्शन) के रत्नत्रय की मालिका को कोई नहीं देख सकता । रत्नत्रय मालिका के दर्शन हेतु भगवान का ऐसा उपदेश है। गाथा-२३ आत्म दर्शन का बाह्य वेष से संबंध नहीं जे इन्द्र धरनेन्द्र गंधर्व जयं, नाना प्रकार बहुबिहि अनंतं । ते नंतं प्रकार बहुभेय कृत्वं, माला न दिस्ट कथितं जिनेन्द्र॥ अन्वयार्थ - (जिनेन्द्र) भगवान महावीर स्वामी ने (कथित) कहा (जे) जो (इन्द्र) इन्द्र (धरनेन्द्र) धरणेन्द्र (गंधर्व) गंधर्व (जय) यक्ष (नाना प्रकारे) नाना प्रकार के (बहुबिहि) बहुत भेद वाले (अनंत) अनेक देव हैं (ते) वे (नंतं प्रकार) अनेक प्रकार के देव (बहुभेय) बहुत प्रकार के वेष (कृत्व) करें, बनायें, तो भी] (माला) ज्ञान गुणमाला, शुद्धात्म स्वरूप को (न दिस्टं) नहीं देख सकते, आत्म दर्शन, आत्म अनुभव नहीं कर सकते। अर्थ- भगवान महावीर स्वामी ने राजा श्रेणिक से कहा - जो इन्द्र, धरणेन्द्र, गंधर्व, यक्ष आदि अनेक प्रकार के बहुत भेद वाले अनेक देव हैं, वे अनेक प्रकार के देव बहुत प्रकार के वेष बनायें, अनेक प्रकार की विक्रिया करें तो भी ज्ञान गुणमाला का दर्शन नहीं कर सकते, वेष बनाने मात्र से शुद्धात्म स्वरूप की अनुभूति नहीं हो सकती। प्रश्न १- इस गाथा का अभिप्राय स्पष्ट कीजिये? उत्तर - भगवान महावीर स्वामी ने कहा- हे राजा श्रेणिक ! यह जो इन्द्र, धरणेन्द्र, गन्धर्व, यक्ष आदि अनेकों तरह के बहुत से देव उपस्थित हैं, इनमें से निज स्वभाव का लक्ष्य किसको है ? निजात्म दर्शन का किसी वेष, पर्याय और परिस्थिति से सम्बन्ध नहीं है। शुद्ध दृष्टि के बिना ज्ञान गुण माला की प्राप्ति असंभव है और जो शुद्ध दृष्टि हैं या होंगे वह किसी भी पर्याय में और किसी भी परिस्थिति में हो सकते हैं क्योंकि धर्म में कोई जाति-पांति, कुल पर्याय का भेद भाव नहीं होता । मनुष्य या देव क्या ? नारकी और तिर्यंच भी निज शुद्धात्मानुभूति द्वारा धर्म को उपलब्ध करके परमात्मा बन सकते हैं, आत्म दर्शन रूप धर्म की उपलब्धि करने में शुद्ध दृष्टि ही प्रमुख उपाय है। इसका बाह्य वेष और क्रिया से कोई संबंध नहीं है।
SR No.009715
Book TitleGyanodaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
PublisherTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy