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श्री मालारोहण जी प्रश्न १- इस गाथा में समवशरण चर्चा से क्या तात्पर्य है? उत्तर - समवशरण में श्री तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी ने अपनी दिव्य ध्वनि में ज्ञान गुणमाला
अर्थात् शुद्धात्म स्वरूप की महिमा का कथन किया और राजा श्रेणिक ने श्री वीरप्रभु से अनेक प्रश्न पूछे, उनका समाधान प्राप्त किया इस गाथा में समवशरण की चर्चा का यही तात्पर्य है।
[यह प्रश्न और समाधान आगे की गाथाओं में दिये गये हैं] प्रश्न २- अनन्त गुण प्रगट कैसे होते हैं? उत्तर - शुद्धात्म तत्त्व की साधना करने वाला साधक जीव स्वरूप के लक्ष्य पूर्वक प्रारंभ से अन्त
तक निश्चय की मुख्यता रखकर व्यवहार को गौण करते जाते हैं इसलिये साधक दशा में निश्चय की मुख्यता के बल से साधक के अंतर में शुद्धता की वृद्धि होती जाती है अर्थात् गुण
प्रगट होते जाते हैं। प्रश्न ३- आत्मा में अनंत गुण हैं ऐसा बतलाने का प्रयोजन क्या है? उत्तर - आत्मा में अनंत गुण है ऐसा बतलाने का प्रयोजन अनंत गुणों के अभेद पिंड निज आत्मा की
पहचान कराना है। जिसके आश्रय से सर्वगुणों में निर्मल पर्याय प्रगट होती है और क्रम से आत्मा मुक्त दशा को प्राप्त हो जाता है।
गाथा-१९ राजा श्रेणिक का प्रश्न (गुणमाला को प्राप्त करेगा कौन) श्रेनीय पिच्छन्ति श्री वीरनाथं, मालाश्रियं मागंति नेयचक्रं ।
धरनेन्द्र इन्द्रं गन्धर्व जयं, नरनाह चक्रं विद्या धरेत्वं ॥ अन्वयार्थ-(श्रेनीय) राजा श्रेणिक (श्री वीरनार्थ) श्री वीरनाथ प्रभु से (मालाश्रियं) रत्नत्रयमयी श्रेष्ठ माला के बारे में (पिच्छन्ति) पूछते हैं (नेयचक्र) स्नेह भक्ति पूर्वक प्रदक्षिणा देकर [ज्ञान गुणमाला (मार्गति) मांगते हैं [श्रेणिक जानना चाहते हैं कि यह ज्ञान गुणमाला] (धरनेन्द्र) धरणेन्द्र (इन्द्र) इन्द्र (गन्धर्व) गन्धर्व (जष्यं) यक्ष (नरनाह) राजा, महाराजा (चक्रं) चक्रवर्ती (विद्या धरेत्वं) विद्याओं के धारी विद्याधर आदि [किसको मिलेगी] ?
अर्थ- राजा श्रेणिक भगवान महावीर स्वामी से रत्नत्रयमयी श्रेष्ठ माला शुद्धात्म स्वरूप के संबंध में पूछते हैं और अत्यंत भक्ति पूर्वक प्रदक्षिणा देकर ज्ञान गुणमाला को मांगते हैं, राजा श्रेणिक श्री वीरनाथ प्रभु से निवेदन करते हैं कि यह ज्ञान गुणमाला धरणेन्द्र, इन्द्र, गंधर्व, यक्ष, राजा, महाराजा, चक्रवर्ती, विद्याधर आदि किसको प्राप्त होगी? प्रश्न १- श्री महावीर भगवान की दिव्यध्वनि में ज्ञान गुण माला की महिमा सुनकर राजा श्रेणिक अत्यंत
आनन्दित हुए। उन्होंने भगवान से पूछा-प्रभो! यह रत्नत्रय मयी ज्ञान गुण माला क्या है? उत्तर - भगवान ने दिव्य ध्वनि में कहा कि आत्मा अखंड आनन्द स्वभाव वाला है, जिसमें अनन्त
दर्शन, अनन्त ज्ञान, अनन्त सुख, अनन्त वीर्य आदि अनन्त गुण हैं। यह रत्नत्रय मयी ज्ञान गुण माला अपना आत्म स्वरूप है। ऐसे चैतन्य मूर्ति निज आत्मा की श्रद्धा करो, उसमें लीन रहो। रत्नत्रय मयी मालिका को धारण करो, इसी से केवलज्ञान प्रगट होता है।