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श्री मालारोहण जी प्रश्न ३- पचहत्तर गुणों का उल्लेख इस गाथा के अतिरिक्त तारण साहित्य में कहाँ किया
गया है? उत्तर - पचहत्तर गुणों का संक्षिप्त उल्लेख वृहद् मंदिर विधि में गुण पाठ पूजा के प्रथम दो श्लोकों में
किया गया है तथा विस्तृत वर्णन श्री तारण तरण श्रावकाचार जी ग्रंथ में गाथा ३२३ से ३६५ तक किया गया है। श्री पंडित पूजा जी षट् आवश्यक का अध्यात्म मय यथार्थ स्वरूप बताने वाला ग्रंथ है।
गाथा-१२ अध्यात्म साधना निश्चय व्यवहार से समन्वित पडिमाय ग्यारा तत्वानि पेष, व्रतानि सील तप दान चेत्वं ।
समिक्त सुद्धं न्यानं चरित्रं, स दर्सनं सुद्ध मलं विमुक्तं ॥ अन्वयार्थ - (तत्वानि पेष) तत्त्वों को अच्छी तरह पहिचान कर, अनुभव कर (पडिमाय ग्यारा) दर्शन आदि ग्यारह प्रतिमा (व्रतानि) अहिंसादि पाँच अणुव्रत (सील) सप्तशील - ३ गुणव्रत, ४ शिक्षाव्रत (तपदान) तप और दान में (चेत्व) चित्त लगाओ अर्थात् इनको धारण करो और (मलं विमुक्त) कर्म मलों से रहित (संमिक्त सुद्ध) शुद्ध सम्यग्दर्शन (न्यानं चरित्र) सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र मयी (स दर्सनं सुद्ध) शुद्ध स्वरूप का दर्शन करो।
अर्थ - तत्त्वों को अच्छी तरह पहिचान कर, अनुभव करके, ग्यारह प्रतिमा, पाँच अणुव्रत, सप्त शील (तीन गुणव्रत, चार शिक्षाव्रत) तथा तप, दान में चित्त लगाओ अर्थात् इनको धारण करो और समस्त कर्म मलों से रहित सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्रमयी शुद्धात्म स्वरूप का दर्शन करो। प्रश्न १- 'पडिमाय ग्यारा तत्वानि पेष' का अर्थ स्पष्ट कीजिये? उत्तर - संसार में जीव-अजीव दो तत्त्व प्रधान हैं, इन दोनों को भेदज्ञान पूर्वक भिन्न-भिन्न परखकर
अच्छी तरह जानकर, अनुभव करके दर्शन प्रतिमा, व्रत प्रतिमा, सामायिक प्रतिमा, प्रोषधोपवास प्रतिमा, सचित्त त्याग प्रतिमा, अनुराग भक्ति प्रतिमा, ब्रह्मचर्य प्रतिमा, आरम्भ त्याग प्रतिमा, परिग्रह त्याग प्रतिमा, अनुमति त्याग प्रतिमा और उद्दिष्ट त्याग प्रतिमा, इन ग्यारह प्रतिमाओं का पालन करो। ग्यारह प्रतिमाओं का आचरण सम्यग्दर्शन पूर्वक देशविरत
नाम के पाँचवें गुणस्थान में होता है। प्रश्न २- व्रतानि शीलं का क्या अर्थ है? उत्तर - व्रतानि से यहाँ पाँच अणुव्रत लिये गये हैं-अहिंसाणुव्रत, सत्याणुव्रत, अचौर्याणुव्रत,
ब्रह्मचर्याणुव्रत, परिग्रह प्रमाण अणुव्रत । शीलं का अभिप्राय सप्त शील से है। तीन गुणव्रत दिव्रत, देशव्रत, अनर्थदण्डव्रत और चार शिक्षाव्रत - सामायिक, प्रोषधोपवास, भोगोपभोग
परिमाण तथा अतिथि संविभाग इस प्रकार इन सात को यहाँ सप्त शील कहा गया है। प्रश्न ३- प्रतिमा एवं व्रताचरण के पालन में क्या सावधानी रखना चाहिये? उत्तर - सम्यग्दर्शन सहित परिणामों की विशुद्धता पूर्वक आत्मोन्नति की श्रेणियों पर आरोहण करने
को प्रतिमा कहते है। पाँच अणुव्रत, तीन गुणवत, चार शिक्षाव्रत इन १२ व्रतों का विशुद्ध भाव पूर्वक निरतिचार पालन करना व्रताचरण है । प्रतिमा व व्रताचरण धारी श्रावक पंचम