________________
श्री मालारोहण जी
गुण (सोलह कारनेत्वं) सोलह कारण भावना (धर्म गुनं ) धर्म के दश लक्षण (दर्सन) सम्यग्दर्शन (न्यान) सम्यग्ज्ञान (चरनं) सम्यक्चारित्र के (गुन) गुणों से (नेत्वं) नित्य, सदैव (सस्वरूपं ) स्व स्वरूप की (मालाय) माला को (गुथतं) गूंथो ।
चार
- - अर्थ देव के ५ गुण पाँच परमेष्ठी, गुरु के ३ गुण तीन रत्नत्रय, शास्त्र के ४ गुण अनुयोग, सिद्ध के ८ गुण, सोलह कारण भावना, धर्म के दशलक्षण, सम्यग्दर्शन के ८ अंग, सम्यग्ज्ञान के ८ अंग और १३ प्रकार का सम्यक्चारित्र इन गुणों से निज स्वरूप की गुणमाला गूँथो । पचहत्तर गुणों के माध्यम से अपने शुद्धात्म तत्त्व का चिंतन - मनन, साधना करो यही देव आराधना की विधि है । पचहत्तर गुण कौन-कौन से हैं भेद सहित स्पष्ट कीजिये ?
प्रश्न १
उत्तर परमेष्ठी ५ अरिहन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधु रत्नत्रय ३ सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान,
-
प्रश्न २
उत्तर
-
सम्यक्चारित्र अनुयोग ४ प्रथमानुयोग, करणानुयोग, चरणानुयोग, द्रव्यानुयोग ।
-
सिद्ध के आठ गुण - १. सम्यक्त्व, २. दर्शन, ३. ज्ञान, ४ अगुरुलघुत्व, ५. अवगाहनत्व, ६. सूक्ष्मत्व, ७. वीर्यत्व ८. अव्याबाधत्व ।
,
सोलह कारण भावना १. दर्शन विशुद्धि २. विनय सम्पन्नता ३. शीलव्रतेष्वनतिचार, ४. अभीक्ष्णज्ञानोपयोग ५. संवेग, ६. शक्तितस्त्याग, ७ शक्तितस्तप, ८. साधु समाधि, ९. वैयावृत्यकरण, १०. अर्हत्भक्ति, ११. आचार्यभक्ति, १२. बहुश्रुतभक्ति १३. प्रवचनभक्ति १४. आवश्यक अपरिहाणि, १५. मार्ग प्रभावना, १६. प्रवचन वत्सलत्व ।
-
सम्यग्ज्ञान के आठ अंग १. व्यंजनाचार वर्ण पद वाक्य को शुद्ध पढ़ना ।
२. अर्थाचार अनेकान्त स्वरूप अर्थ को ठीक-ठीक समझना ।
धर्म के दशलक्षण - उत्तम क्षमा, मार्दव, आर्जव, सत्य, शौच, संयम, तप, त्याग, आकिंचन्य, ब्रह्मचर्य। सम्यग्दर्शन के आठ अंग निःशंकित, नि: कांक्षित, निर्विचिकित्सा, अमूढदृष्टि,
।
- •
उपगूहन, स्थितिकरण, वात्सल्य, प्रभावना ।
-
-
-
-
—
-
५८
-
३. उभयाचार ४. कालाचार
५. विनयाचार
मन वचन काय से शास्त्र की विनय करना ।
६. उपधानाचार - शास्त्र को वेष्टन आदि में विनय पूर्वक सम्हाल कर रखना।
७. बहुमानाचार बहुमान पूर्वक पाठ आदि पढ़ना ।
८. अनिह्नवाचार-गुरु व शास्त्र का नाम नहीं छिपाना ।
तेरह प्रकार का चारित्र पाँच महाव्रत अहिंसा महाव्रत, सत्य महाव्रत, अचौर्य महाव्रत, - ब्रह्मचर्य महाव्रत, अपरिग्रह महाव्रत। तीन गुप्ति
मनोगुप्ति, वचनगुप्ति, कायगुप्ति ।
पाँच समिति - ईर्या समिति, भाषा समिति, एषणा समिति, आदान निक्षेपण समिति, प्रतिष्ठापना समिति इस प्रकार ७५ गुण कहे गये हैं ।
पचहत्तर गुणों का देव आराधना से क्या संबंध है ?
-
पाठ आदि शुद्ध पढ़ते हुए अर्थ को ठीक-ठीक समझना । सामायिक आदि के काल को टाल कर स्वाध्याय करना ।
-
इन पचहत्तर गुणों के द्वारा अरिहंत सिद्ध भगवान के गुणों का और अपने सत् स्वरूप शुद्धात्म देव का आराधन करना व्यवहार से देव आराधना है। अपने उपयोग को शुद्ध स्वभाव में लगाना निश्चय से देव की आराधना है ।