SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 72
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री मालारोहण जी अस्तिकाय में (जे) जो (चेतनेत्वं गुन) सदा काल चैतन्य गुण से (जुक्त) युक्त है [वह] (सुद्धात्म तत्व) शुद्धात्म तत्त्व (विस्व) विश्व को (प्रकासं) प्रकाशित करने वाला (तत्वानि) तत्त्वों को (वेद) जानने वाला है (श्रुतं) शास्त्र, जिनवाणी में [शुद्धात्म तत्त्व को] (देवदेवं) देवों का देव कहा गया है। अर्थ- सात तत्त्व, छह द्रव्य, नौ पदार्थ और पाँच अस्तिकाय में जो चैतन्य गुण से युक्त है ऐसा शुद्धात्म तत्त्व ही विश्व को प्रकाशित करने वाला और समस्त तत्त्वों को जानने वाला है, जिनवाणी में सर्वज्ञ परमात्मा ने उसी को देवों का देव कहा है। प्रश्न १- तत्त्व, पदार्थ, द्रव्य और अस्तिकाय का स्वरूप क्या है? उत्तर - तत्त्व - वस्तु के स्वभाव को तत्त्व कहते हैं। २. पदार्थ - जिससे पुण्य-पाप रूप पदों का बोध हो उसे पदार्थ कहते हैं। ३. द्रव्य - गुणों के समूह को द्रव्य कहते हैं। ४. अस्तिकाय - बहुप्रदेशी द्रव्य को अस्तिकाय कहते हैं। प्रश्न २- तत्त्व, पदार्थ, द्रव्य और अस्तिकाय के भेद बताइये? उत्तर - तत्त्व - जीव, अजीव, आस्रव, बंध, संवर, निर्जरा, मोक्ष । पदार्थ - जीव, अजीव, आस्रव, बंध, पुण्य, पाप, संवर, निर्जरा, मोक्ष । द्रव्य-जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश, काल | अस्तिकाय - जीवास्तिकाय, अजीवास्किाय, धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय और आकाशास्तिकाय । प्रश्न ३- जब जीव एक है फिर उसे जीव तत्त्व, जीव पदार्थ, जीव द्रव्य और जीवास्तिकाय क्यों कहा गया है? उत्तर - जीव में ज्ञान दर्शन चेतना भाव जीव रूप ही हैं अतः वह जीव तत्त्व है। जीव शब्द से ज्ञानानंद स्वभावी आत्मा (जीव) का बोध होता है अतः वह जीव पदार्थ है । स्वनाम चतुष्टय वाला होने से वह जीव पदार्थ है। 'दव्वं दव्व सहावं' जिसका द्रवित अर्थात् परिणमित होने का स्वभाव है वह जीव द्रव्य है। जीव के असंख्यात प्रदेश होने से उसका एक क्षेत्र है अतः वह जीवास्तिकाय है। ऐसा जीव का द्रव्य क्षेत्र काल भाव स्व चतुष्टय रूप कथन आता है। प्रश्न ४- तत्त्व, पदार्थ, द्रव्य और अस्तिकाय किसके विषय हैं ? उत्तर - श्री ज्ञान समुच्चय सार जी ग्रंथ में आचार्य श्री मद् जिन तारण तरण मण्डलाचार्य जी महाराज ने गाथा ७६४ से ८३२ तक सत्ताईस तत्त्वों का विशद् वर्णन किया है। वहाँ तत्त्व आदि किसके विषय हैं यह स्पष्ट किया है जो इस प्रकार हैं- तत्त्व - दृष्टि का विषय है । पदार्थ- ज्ञान का विषय है। द्रव्य - चारित्र का विषय है। अस्तिकाय - तप का विषय है। गाथा-११ देवाराधना का विधान, पचहत्तर गुणों से कल्याण देवं गुरं सास्त्र गुनानि नेत्वं, सिद्ध गुनं सोलहकारनेत्वं । धर्म गुनं दर्सन न्यान चरनं, मालाय गुथतं गुन सस्वरूपं ॥ अन्वयार्थ - (देव) देव के (गुरं) गुरू के (सास्त्र) शास्त्र के (गुनानि) गुण (सिद्ध गुन) सिद्ध के
SR No.009715
Book TitleGyanodaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
PublisherTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy