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________________ श्री मालारोहण जी - अन्वयार्थ - (तत्वार्थ) प्रयोजन भूत शुद्धात्म तत्त्व की (सार्धं) श्रद्धा सहित (त्वं) तुम (दर्सनेत्वं) अनुभव करो [कि यह शुद्धात्म तत्त्व] (मलं) मलों से विकारों से, कर्मों से (विमुक्तं ) रहित ( संमिक्त सुद्ध) सम्यक्त्व से शुद्ध (न्यानं) ज्ञान (चरनस्य) चारित्र (वीजं पुरुषार्थ आदि (सुद्धस्य) शुद्ध (गुनं ) गुणों का धारी है ( सुद्धात्म तत्वं) [ऐसे] शुद्धात्म तत्व को ( नित्वं) सदैव नित्य ( नमामि ) नमस्कार करता हूँ। , अर्थ प्रयोजनीय शुद्धात्म तत्त्व की श्रद्धा पूर्वक अपने स्वरूप का अनुभव करो। शुद्धात्म तत्व समस्त कर्म मलों से रहित, सम्यक्त्व से शुद्ध, ज्ञान चारित्र तथा पुरुषार्थ आदि शुद्ध गुणों का धारी है। ऐसे महिमामय शुद्धात्म तत्त्व को मैं नमस्कार करता हूँ । प्रश्न १ - आत्मा अनंत गुणों का धारी है फिर यह निर्बल, पराश्रित पराधीन क्यों रहता है ? - गाथा - ९ अतिशय महिमा मय शुद्धात्म तत्त्व तत्वार्थ सार्धं त्वं दर्सनेत्वं, मलं विमुक्तं संमिक्त सुद्धं । न्यानं गुनं चरनस्य सुद्धस्य वीर्जं, नमामि नित्वं सुद्धात्म तत्वं ॥ - उत्तर आत्मा स्वभाव से शुद्धात्मा परमात्मा है, अनंत गुणों का धारी है किन्तु इसे अपनी सत्ता शक्ति का बोध नहीं है। अनंत गुणों में से एक भी गुण की पहिचान नहीं है इसलिये शरीराश्रित होकर कर्म के उदय जन्य परिणमन में, विभावों में जुड़ा रहता है। शुभ - अशुभ क्रियाओं का अपने को कर्ता मानता है, अज्ञानी बना हुआ है इसलिये निर्बल पराधीन पराश्रित रहता है। अपनी अनंत गुणों मयी सत्ता को जान ले, पहिचान ले तो स्वयं ही तीन लोक का नाथ परमात्मा है। प्रश्न २- अनंत गुणों में ज्ञान और अन्य गुणों की क्या विशेषता है ? उत्तर अनंत गुणों में ज्ञान ऐसा गुण है जो ज्ञेयाकार होकर परिणमता है। शेष अन्य गुण आकार रूप नहीं होते इसलिये अनाकार रहते हैं । यही कारण है कि ज्ञान सविकल्प और साकार है जबकि अन्य अनन्त गुणों में निर्विकल्पता होती है। ज्ञान के अतिरिक्त शेष सभी गुण केवल सत् रूप लक्षण से ही लक्षित हैं इसलिये सामान्य अथवा विशेष दोनों ही अपेक्षा से वास्तव में अनाकार रूप ही होते हैं। - ५६ प्रश्न ३ - शुद्धात्म तत्त्व को बार-बार नमस्कार करने का क्या प्रयोजन है ? उत्तर जिस प्रकार किसी व्यक्ति को राजा से कुछ लेना होता है तो वह राजा का बहुमान करता है, इसी प्रकार साधक ज्ञानी अपने शुद्धात्म स्वरूप में लीन होना चाहता है इसलिये बार-बार शुद्धात्म तत्त्व के गुणों की महिमा गाता है, बहुमान करता है, नमस्कार करता है। गाथा - १० सत्ताईस तत्त्वों में इष्ट निज शुद्धात्म तत्त्व जे सप्त तत्वं षट् दर्व जुक्तं, पदार्थ काया गुन चेतनेत्वं । विस्वं प्रकासं तत्वानि वेदं श्रुतं देवदेवं सुद्धात्म तत्वं ॥ · अन्वयार्थ - (सप्त तत्वं) सात तत्त्व (षट् दर्व) छह द्रव्य (पदार्थ) नव पदार्थ (काया) पाँच
SR No.009715
Book TitleGyanodaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
PublisherTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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