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________________ ४७ श्री मालारोहण जी (विक्त) व्यक्त अर्थात् प्रगट कर लिया है (श्री वीरनाथं) श्री वीरनाथ भगवान आपको (भक्तं ) भक्ति पूर्वक (नमामि ) नमस्कार करता हूँ (केवलि नंत) अनन्त केवलज्ञानी और (सिद्ध) सिद्ध भगवन्तों को ( नमामिहं) नमस्कार करता हूँ (त्वं प्रबोध) [हे आत्मन् ] तुम्हारे प्रबोधनार्थ (माला गुनं ) माला के गुणों को अर्थात् मालारोहण ग्रंथ को (बोछन्ति ) कहता हूँ। अर्थ परम वीतरागी श्री वीरनाथ भगवान आपने अनंत चतुष्ट्यमयी स्वरूप को प्रगट कर लिया है। हे प्रभु! मैं आपको भक्ति पूर्वक नमस्कार करता हूँ। अनंत केवलज्ञानी और अनंत सिद्ध भगवंतों को नमस्कार करके हे आत्मन् ! तुम्हारे लिये तत्त्व का विशेष ज्ञान प्रगट हो, इस लक्ष्य से माला के गुणों को अर्थात् मालारोहण ग्रंथ को कहता हूँ। प्रश्न १ - अनन्त चतुष्टय क्या है ? उत्तर अनन्त दर्शन, अनन्त ज्ञान, अनन्त सुख और अनन्त वीर्य (बल) यह अनन्त चतुष्टय कहलाते हैं, अनन्त चतुष्टय आत्मा की सत्ता है। अनन्त चतुष्टय आत्मा की सत्ता है तो प्रगट क्यों नहीं है ? प्रत्येक आत्मा की सत्ता अनन्त चतुष्टय मयी है किन्तु संसारी जीवों का अनन्त चतुष्टय घातिया कर्मों से आवृत हो रहा है इसलिये प्रगट नहीं है, जो वीतरागी साधु अपने स्वरूप में लीन होकर चार घातिया कर्मों को क्षय करते हैं उन्हें अनन्त चतुष्टय प्रगट हो जाता है। - प्रश्न २ - उत्तर - प्रश्न ३ - कौन से कर्म के अभाव से अनंत दर्शन आदि प्रगट होते हैं ? उत्तर - प्रश्न ४उत्तर - - प्रश्न ५उत्तर दर्शनावरण के अभाव से - अनंत दर्शन, ज्ञानावरण के अभाव से - अनंत ज्ञान, मोहनीय के अभाव से - अनंत सुख, अंतराय के अभाव से - अनंत बल प्रगट होते हैं । मालारोहण का क्या अर्थ है ? मालारोहण का अर्थ - माला अर्थात् श्रेणियां, मंजिलें । आरोहण अर्थात् - चढ़ना । इस प्रकार माला + आरोहण मालारोहण । = सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र की श्रेणियों पर चढना मालारोहण है। भेदज्ञान तत्त्वनिर्णय पूर्वक साधना की उत्तरोत्तर ऊंचाइयों को उपलब्ध करना मालारोहण है। पचहत्तर गुणों की माला अपने शुद्धात्म देव को समर्पित करना अर्थात् गुणों को प्रगट करना मालारोहण है । अभिप्राय यह है कि ७५ गुणों के चिंतन - मनन पूर्वक निज शुद्धात्म स्वरूप की आराधना करना मालारोहण है। मालारोहण का यहाँ क्या अभिप्राय है ? आचार्य श्रीमद् जिन तारण तरण मण्डलाचार्य जी महाराज ने तत्त्व का विशेष ज्ञान प्रगट हो इस उद्देश्य से यहां १०८ गुणों की माला का वर्णन करने की प्रतिज्ञा की है । वे १०८ गुण इस प्रकार हैं - देव आराधना हेतु ७५ गुण (गाथा ११) देव के ५ गुण (पंच परमेष्ठी), गुरु के तीन गुण (तीन रत्नत्रय), शास्त्र के चार गुण (चार अनुयोग ) सिद्ध के आठ गुण, सोलह कारण भावना, धर्म के दशलक्षण, सम्यग्दर्शन के आठ अंग, सम्यग्ज्ञान के आठ अंग और तेरह प्रकार का चारित्र । तत्त्व निर्णय हेतु २७ तत्त्व (गाथा - १०) ७ तत्त्व, ९ पदार्थ, ६ द्रव्य, ५ अस्तिकाय । साधना हेतु ६ सम्यक्त्व (गाथा - ३,२९) मूल सम्यक्त्व, आज्ञा सम्यक्त्व, वेदक सम्यक्त्व, उपशम सम्यक्त्व, क्षायिक सम्यक्त्व, शुद्ध सम्यक्त्व |
SR No.009715
Book TitleGyanodaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
PublisherTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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