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ज्ञान विज्ञान भाग -२
३९
तीर्थंकर एवं भविष्यत् चौबीसी के प्रथम तीर्थंकर के बीच वीतरागता की अविच्छिन्न परम्परा का जो कथन है यह हमारे लिये गौरव का विषय है तथा इससे यह ज्ञान होता है कि श्री गुरु महाराज ने हमें जो कल्याणकारी अध्यात्म का मार्ग दिया है यह तीर्थंकर भगवंतों की मूल परम्परा से निःसृत है। धर्मोपदेश में देव गुरु शास्त्र की पूजा -
धर्मोपदेश द्वारा वीतरागी देव, निर्ग्रन्थ गुरु, जिनवाणी तथा अहिंसामयी वीतराग धर्म के गुणों की आराधना की जाती है। सम्पूर्ण धर्मोपदेश देव गुरु शास्त्र की गुण पूजा है। श्रोता का लक्षण
पढ़ेया पढ़त है अपनी बुद्धि विशेष, सुनैया सुनत है अपनी बुद्धि विशेष। पढ़ता और वक्ता से श्रोता का लक्षण दीर्घ है, कब दीर्घ है ? जब गुण-गुण को जाने, दोष-दोष को पहिचाने, गुण को ग्रहण करे और दोष को परित्याग करे तब वक्ता से श्रोता का लक्षण दीर्घ है। आत्मार्थी मनुष्य का कर्तव्य -
निज शत्रु जो घर मांहि आवे, मान वाको कीजिये । शुभ ऊँची आसन मधुर वाणी, बोल के यश लीजिये ॥ भगवान सुगुरु निदान मुनिवर, देखकर मन हर्षियो ।
पड़गाह लीजे दान दीजे, रत्न वर्षा बरसियो । धर्मोपदेश में तारण पंथ -
सर्वथा रंज रमन, आनन्द वांछा पूर्ण होय कहने प्रमाण जिनेश्वर देव जी के जिन कहे, जिनके अस्थाप रूप वाणी कहें, जिन ज्योति वाणी ज्ञान श्री कण्ठ कमल मुखार विंद वाणी श्री भैया रुइयारमण जी कहें जिन गुरुन को कहनो सत्य है, ध्रुव है, प्रमाण है। इष्ट स्मरण की प्रेरणा और फल
इष्ट ही दर्शन, इष्ट ही ज्ञान ऐसा जानकर हे भाई! आठ पहर की साठ घड़ी में एक घड़ी, दो घड़ी स्थिर चित्त होय, देव गुरु धर्म को स्मरण करे। आत्मा को ध्यान धरे तो जीव को धर्म लाभ होय, कर्मन की क्षय होय और धर्म आराध्य-आराध्य जीव परम्परा निर्वाण पद को प्राप्त होय है।
८ पहर में ६० घड़ी का गणित
१पहर = ३ घंटा, ८ पहर =२४ घंटा, १ घंटा = ६० मिनिट, २४ घंटा के मिनिट बनाओ.
२४x ६० = १४४० मिनिट १ घड़ी = २४ मिनिट, १४४०२४ = ६० घड़ी ।