________________
ज्ञान विज्ञान भाग -२
पाठ-८
बृहद् मंदिर विधि परिचय प्रारम्भिक परिचय -
तारण समाज में विगत ५०० वर्षों से मंदिर विधि का महत्व अक्षुण्ण रूप से बना हुआ है। मंदिर विधि आज भी वही है जो हमारे पूर्वज किया करते थे। मंदिर विधि तारण समाज की आधार शिला है जिस पर तारण पंथ अर्थात् मोक्ष मार्ग का भवन खड़ा हुआ है। मंदिर विधि के द्वारा हम सच्चे देव, गुरु, धर्म, शास्त्र की आराधना करके भाव पूजा संपन्न करते हैं। प्रत्येक माह की अष्टमी, चतुर्दशी आदि पर्यों पर तथा प्रतिदिन के नियम में साधारण मंदिर विधि द्वारा पूजा की जाती है। इसे बोलचाल की भाषा में छोटी मंदिर विधि कहते हैं।
दशलक्षण आदि महान पर्वो पर बृहद् मंदिर विधि की जाती है, यह धर्मोपदेश मोक्षमार्ग का विधान है, जिससे आत्म कल्याण का मार्ग प्रशस्त होता है। मंदिर विधि के लेखक -
आर्यिका कमल श्री माता जी के मार्गदर्शन में आर्यिका ज्ञान श्री एवं श्री रुइयारमण जी ने सर्व प्रथम यह मंदिर विधि धर्मोपदेश लिखा। श्री गुरु महाराज के श्री संघ में विद्वानों की एक परिषद् थी, जिसमें पंडित उदउ, पंडित सरउ, पंडित भीषम, पंडित लषन प्रमुख विद्वान थे। इन विद्वान महानुभावों का हर कार्य में विशिष्ट योगदान रहता था। इस बृहद् मंदिर विधि में धर्मोपदेश के द्वारा श्री गुरु महाराज (आचार्य श्री तारण स्वामीजी) के सान्निध्य में १२ तिलक प्रतिष्ठायें संपन्न हुईं और उन प्रतिष्ठा महोत्सवों में पहुँचने वाले सभी भव्य जीवों को श्री गुरु महाराज का आशीर्वाद प्राप्त हुआ। इसका प्रमाण श्री छद्मस्थवाणी और नाममाला ग्रन्थ में दिया गया है। धर्मोपदेश की विषय वस्तु -
धर्मोपदेश के द्वारा अनादि-अनन्त धर्म की शाश्वत परम्परा का बोध होता है। धर्मोपदेश में जो विषय पढ़े जाते हैं वे संक्षेप में इस प्रकार हैं-धर्मोपदेश देने के अधिकारी जिनेन्द्रदेव की महिमा, जिनेन्द्र देव के उपदेश में सम्यक्त्व की विशेषता, अतीत की चौबीसी के अंतिम तीर्थंकर श्री अनंत वीर्य प्रभु का प्रसाद लेकर वर्तमान चौबीसी के प्रथम तीर्थंकर श्री आदिनाथ स्वामी के होने का उल्लेख, पंच परमेष्ठी मंत्र, एक सौ तैतालीस गुण, छह यंत्र (पाँच परमेष्ठी, एक जिनवाणी) की पूजा, सत्ताईस तत्व का विचार, दान चार, त्रेपन क्रिया का विधि विचार, आदिनाथ भगवान का परिचय, समवशरण वर्णन, देवांगलीय पूजा, इन्द्रध्वज पूजा, शास्त्र और गुण पाठ पूजा, चौबीसी और विदेह क्षेत्र के बीस तीर्थंकरों का स्तवन, भगवान महावीर स्वामी का पूर्ण परिचय तथा आगामी चौबीसी में होने वाले प्रथम तीर्थंकर राजा श्रेणिक के जीव को भगवान महावीर स्वामी द्वारा अकता प्रसाद अर्थात् आगामी चौबीसी के प्रथम तीर्थंकर होने की घोषणा का उल्लेख, मंगल, वीर निर्वाण, वैराग्य प्रेरणा, शास्त्र, सूत्र, सिद्धांत की व्याख्या, नाम लेत पातक कटें दोहा, आशीर्वाद, अबलबली आदि महत्वपूर्ण विषय बृहद् मंदिर विधि में पढ़े जाते हैं। धर्मोपदेश द्वारा मूल धारा का ज्ञान
धर्मोपदेश में अतीत की चौबीसी के अंतिम तीर्थंकर और वर्तमान चौबीसी के प्रथम तथा अंतिम