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________________ ज्ञान विज्ञान भाग - २ तेजकुमार - - पुष्पदंत शीतल श्रेयांस, वासुपूज्य अरू विमल अनंत । धर्मनाथ वंदत अविनीश्वर, सोलह कारण शांति जिनेश्वर । कुन्थु अरह मल्लि मुनिसुव्रत वीसा, नमूं अष्टांग नमि इकवीसा । नेमिनाथ साहसि गिरि नेमि, सहनसील बाईस परीषह | पारसनाथ तीर्थंकर तेईस वर्द्धमान जिनवर चौबीस । चार जिनेन्द्र चहुँ दिशि गये, बीस सम्मेदशिखर पर गये ॥ आदिनाथ कैलाशहिं गये, वासुपूज्य चम्पापुर गये । नेमिनाथ स्वामी गिरनार, पावापुरी वीर जिनराज ॥ दो धवला दो श्यामला वीर, दो जिनवर आरक्त शरीर । हरे वरण दो ही कुलवन्त, हेमवरण सोला इकवंत ॥ चौबीस तीर्थंकर मोक्ष गये, दश कोड़ाकोड़ी काल विल भये । भये सिद्ध अरू होंय अनंत, जे वन्दों चौबीस जिनेन्द्र वन्दौं तीर्थंकर चौबीस, वन्दौं सिद्ध बसें जग शीश । रुइयारमण चौथे छन्द तक तो तुम्हारी समझ में उत्तर पांचवें छन्द में है। आदिनाथ - ३४ वन्द आचारज उवझाय वन्दौं साधु गुरुन के पांय ॥ दादा, बहुत आनन्द आया आपके साथ चौबीसी पढ़ने में और यह भी समझ आ गया कि प्रथम चार छन्दों में चौबीस तीर्थकरों के नाम हैं और चौथे छन्द की अन्तिम पंक्ति में बतलाया गया है कि चौबीस में से बीस तीर्थंकर सम्मेदशिखर से मोक्ष गये हैं किन्तु यह चार तीर्थंकर कौन-कौन से हैं और कहां-कहां से मोक्ष गये हैं? - अच्छा आ गया और तुमने जो प्रश्न किया है उसका कैलाश पर्वत से मोक्ष गये। वासुपूज्य चंपापुर से, नेमिनाथ - गिरनार से और महावीर भगवान -पावापुरी से और शेष बीस तीर्थंकर सम्मेदशिखर से मोक्ष गये हैं। तेजकुमार - और छटवें छन्द का अर्थ तो बहुत कठिन लगता है दादा, उसका क्या अर्थ है ? रुइयारमण छटवें छन्द का अर्थ है कि चन्द्रप्रभ और पुष्पदंत जी दो तीर्थंकरों के शरीर का वर्ण सफेद था नेमिनाथ और मुनिसुव्रतनाथ दो तीर्थकरों के शरीर का श्याम वर्ण था, वासूपूज्य और पद्म प्रभु दो तीर्थकरों के शरीर का वर्ण लाल था, पार्श्वनाथ और सुपार्श्वनाथ के शरीर का वर्ण हरा था तथा शेष सोलह तीर्थंकरों के शरीर का तपे हुए स्वर्ण के समान पीत वर्ण था। तेजकुमार दादा, तारण स्वामी ने तो निराकार चैतन्य की आराधना रूप शुद्ध अध्यात्म का मार्ग बताया है और मन्दिर विधि में तीर्थंकरों के शरीर का रंग भेद बतलाया गया है, इसका क्या प्रयोजन है ? रुइयारमण - १. तीर्थंकर भगवंतों के शरीर विभिन्न वर्ण वाले थे, इस प्रकार आत्मा के साथ संयोग रूप व्यवहार का ज्ञान कराने के लिये तीर्थंकरों के शरीर के वर्णभेद का कथन किया है। २. यह कथन जीव - अजीव की यथार्थ पहिचान की ओर संकेत करता है कि शरीर का रंग कैसा भी हो किन्तु आत्मा शरीर से सर्वथा भिन्न अरस, अरुपी, अगंध, अवर्ण है वही पूज्य और आराध्य है । ३. मुक्ति की प्राप्ति करने में जाति भेद और वर्ण भेद बाधक नहीं है, कोई भी संज्ञी पुरुषार्थी
SR No.009715
Book TitleGyanodaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
PublisherTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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