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________________ ज्ञान विज्ञान भाग -२ पाठ-६ मन्दिर विधि परिचय (दादा रुइयारमण और तेजकुमार का संवाद) तेजकुमार - दादा, प्रणाम । आज तो आप बहुत जल्दी में दिख रहे हैं, कहीं जा रहे हैं क्या? रुइयारमण- आओ, तेजकुमार । मैं चैत्यालय जाने की तैयारी कर रहा हूँ। तेजकुमार - क्यों दादा ! क्या आज चैत्यालय में कोई विशेष कार्यक्रम होना है ? रुइयारमण - बेटा, आज चतुर्दशी है न, इसलिये मन्दिर विधि होना है। क्या तुम भी चैत्यालय चल रहे हो? तेजकुमार - हाँ दादा, आपके साथ मैं भी चलता हूँ , वैसे जब-जब मन्दिर विधि होती है तब-तब मैं चैत्यालय जरूर जाता हूँ, परन्तु दादा मेरी समझ में कुछ नहीं आता इसलिये मन्दिर विधि के बारे में मुझे समझायें तो बड़ी कृपा होगी। रुइयारमण- हाँ बेटा, तुम जिज्ञासु हो, इसलिये तुम्हारी समझ में जल्दी आ जावेगा। किसी भी विषय को समझने के लिये जिज्ञासा होना अत्यंत आवश्यक है। तेजकुमार - गुरु महाराज और आप लोगों की सत्संगति से ही धीरे-धीरे सीख रहा हूँ। हाँ तो दादा, मन्दिर विधि के बारे में बताइये न। रुइयारमण- देखो बेटा, भाव पूजा को मन्दिर विधि कहते हैं, यह भाव पूजा(मन्दिर विधि) बहुत भक्ति भाव से देव, गुरु, धर्म एवं शास्त्र के बहुमानपूर्वक की जाती है। प्रत्येक माह की अष्टमी, चतुर्दशी एवं प्रतिदिन के नियम में साधारण मन्दिर विधि की जाती है। इसे बोलचाल में छोटी मन्दिर विधि कहते हैं और दशलक्षण आदि महान पर्व के दिनों में वृहद् मन्दिर विधि की जाती है, इसे धर्मोपदेश के नाम से जाना जाता है। तेजकुमार - मन्दिर विधि को प्रारंभ करने की विधि क्या है और पहले तो छोटी मन्दिर विधि के बारे में बताइये। इसमें कौन-कौन से विषय पढ़े जाते हैं ? रुइयारमण- सबसे पहले यह समझो कि सादी वेशभूषा में (धोती, कुर्ता, टोपी पहिनकर) मन्दिर विधि करना चाहिये। आगे की विधि और विषय इस प्रकार हैं- पंडित जी के सावधान कहते ही सभी श्रावक खड़े हो जाते हैं और जिनवाणी को विनयपूर्वक सिंहासन पर विराजमान करते हैं फिर 'जिनवाणी के ज्ञान से सूझे लोकालोक' दोहा पढ़कर विनय सहित नमस्कार कर बैठते हैं। 'जय नमोऽस्तु' कहकर तत्त्वमंगल सामूहिक रूप से पढ़ते हैं, पश्चात् श्री ममलपाहुड़ जी ग्रन्थ की कोई भी एक फूलना पढ़ते हैं, फिर वर्तमान चौबीसी, विदेह क्षेत्र के बीस तीर्थंकरों की स्तुति, विनय बैठक, नाम लेत पातक कटेंदोहा, आशीर्वाद और अबलबली का भक्ति सहित वांचन किया जाता है। तेजकुमार - जो विषय आपने बताये, इनमें से तत्त्व मंगल और फूलना हम पढते रहते हैं. चौबीसी कैसे पढ़ते हैं दादा, हमको चौबीसी सुनाइये? रुइयारमण- अच्छा, मैं चौबीसी प्रारंभ कर रहा हूँ तुम ध्यान से सुनना और मेरे साथ पढ़ना - श्री ऋषभ अजित सम्भव अभिनन्दन, सुमति पद्मप्रभु छठे जिनेश्वर । सप्तम तीर्थंकर भये हैं सुपारस, चन्द्रप्रभ आठम हैं निवारस ॥
SR No.009715
Book TitleGyanodaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
PublisherTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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