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ज्ञान विज्ञान भाग -२
मनुष्य रत्नत्रय को धारण कर स्वभाव का अवलम्बन लेकर मुक्ति को प्राप्त कर सकता है यह
महत्वपूर्ण बात समझाने के प्रयोजन से शरीर के वर्णभेद का कथन किया गया है। तेजकुमार - दादा, यह तो बड़ी अपूर्व बात आपने समझाई, ऐसा तो कोई जानता ही नहीं। अब यह
बताइये कि तीर्थंकरों के मोक्ष जाने का आसन कौन सा था। रुइयारमण- हाँ, यह भी समझने योग्य है । चौबीस में से तीन तीर्थंकर आदिनाथ, वासुपूज्य, नेमिनाथ
पद्मासन से और शेष २१ तीर्थंकर खड्गासन (कायोत्सर्गासन) से मोक्ष गये। एक बात और
है कि पाँच तीर्थंकर बाल ब्रह्मचारी थे। तेजकुमार - अच्छा तो उन्होंने संसार की बेड़ी में पांव ही नहीं फंसाया होगा, वे बाल ब्रह्मचारी तीर्थंकर
कौन-कौन से हैं? रुइयारमण- बाल ब्रह्मचारी तीर्थंकर पांच हैं - १. वासुपूज्य,२. मल्लिनाथ,३. नेमिनाथ, ४. पार्श्वनाथ
५. महावीर भगवान । इन्हें पंच बालयति कहते हैं। तेजकुमार - चौबीसी तो अच्छी तरह समझ में आ गई, अब कुछ विदेह क्षेत्र के बारे में बताइये? रुइयारमण- विदेह क्षेत्र में षट्काल चक्र परिवर्तन नहीं होता वहाँ हमेशा चतुर्थकाल वर्तता रहता है इसलिये
बीस तीर्थंकर वहाँ हमेशा विद्यमान रहते हैं। तेजकुमार - विदेह क्षेत्र के बीस तीर्थंकर कौन-कौन से हैं ? रुइयारमण- १.सीमंधर २. युगमंधर ३. बाहु ४.सुबाहु ५. सुजात ६. स्वयं प्रभ ७. ऋषभानन ८. अनंत
वीर्य ९.सूरिप्रभ १०.विशालकीर्ति ११. वजधर १२. चन्द्रानन १३. चन्द्रबाहु १४. भुजंगम
१५. ईश्वर १६. नेमिप्रभ १७. वीरसेन १८. महाभद्र १९. देवयश २०. अजितवीर्य। तेजकुमार - मन्दिर विधि में इस संबंध में क्या पढ़ा जाता है ? रुइयारमण- मन्दिर विधि में विदेह क्षेत्र के बीस तीर्थंकरों की स्तुति पढ़ी जाती है, आओ हम स्तुति को
पढ़कर आज की चर्चा को विराम देंगेसीमन्धर स्वामी जिन नमों, मन वच काय हिये में धरों । युगमन्धर स्वामी युग पाय, नाम लेत पातक क्षय जाय ।। बाहु सुबाहु स्वामी धर धीर, श्री संजात स्वामी महावीर । स्वयं प्रभ स्वामी जी को ध्यान, ऋषभानन जी कहें बखान || अनन्तवीर्य सूरिप्रभ सोय, विशालकीर्ति जग कीरत होय । वजधर स्वामी चन्द्रधर नेम, चन्द्रबाह कहिये जिन बैन । भुजंगम ईश्वर जग के ईश, नेमीश्वर जू की विनय करीश । वीर्य सेन वीरज बलवान, महाभद्र जी कहिये जान ॥ देवयश स्वामी श्री परमेश, अजित वीर्य सम्पूर्ण नरेश ।
विद्यमान बीसी पढ़ो चितलाय, बाढ़े धर्म पाप क्षय जाय ॥ तेजकुमार - दादा, आज बहुत आनन्द आया, इसी प्रकार मार्गदर्शन प्रदान करते रहें। दादा, प्रणाम...।
अभ्यास के प्रश्न : प्रश्न - १ संक्षेप में मंदिर विधि का वर्णन कीजिये? प्रश्न -२ मंदिर विधि पढ़ने का क्रम क्या है ? प्रश्न - ३ मंदिर विधि पढ़ते समय विनय क्यों आवश्यक है ?