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________________ ज्ञान विज्ञान भाग -२ पाठ-५ विचार मत - एक क्रांति आचार्य श्री जिन तारण तरण मंडलाचार्य जी महाराज ने विचार मत में तीन ग्रन्थों की रचना की। विचारमत जीवन जीने की कला है। विचार मत का अर्थ है - बुद्धिपूर्वक अपने स्वरूप का निर्णय करना। स्वयं के निर्णय के अभाव में आत्म स्वरूप से अपरिचित जीव संसार में जन्म-मरण के दुःख भोग रहा है। विचार मत वह मार्ग है जिस पर चलकर अध्यात्म की ज्योति प्रकट होती है और अज्ञान अंधकार सदा के लिए दूर हो जाता है। इस प्रकार का लक्ष्य बनाना, बुद्धिपूर्वक अपने आत्म स्वरूप का निर्णय करना, विचार मत का अभिप्राय है। इस मत में तीन ग्रन्थ हैं-श्री मालारोहण जी, श्री पण्डित पूजा जी, श्री कमल बत्तीसी जी। इन ग्रन्थों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है - श्री मालारोहण जी यह विचारमत का प्रथम ग्रन्थ है, इस ग्रन्थ में ३२ गाथाएँ हैं तथा सम्यग्दर्शन इस ग्रन्थ का प्रमुख विषय है। प्रथम दो गाथाओं में मंगलाचरण करके तीसरी गाथा में सम्यग्दर्शन का महत्त्व, सम्यग्दृष्टि की विशेषता, सच्चे पुरुषार्थ का स्वरूप, मुक्ति को प्राप्त करने का उपाय तथा एक सौ आठ गुणों की माला गूंथने का अर्थात् गुणों की आराधना पूर्वक आत्म साधना करने का मार्ग प्रशस्त किया है। सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र की श्रेणियों पर आरोहण करना मालारोहण है। शुद्धात्म स्वरूप के आश्रय से आत्म गुणों की आराधना करना मालारोहण है। सम्यग्दर्शन मोक्ष महल की प्रथम सीढ़ी है। सम्यग्दर्शन जीव का परम हितकारी है, सम्यक्त्व जैसा श्रेष्ठ रत्न संसार में दूसरा कोई नहीं है। मिथ्यात्व अत्यंत दुःख का कारण है और सम्यक्त्व परम सुख का कारण है इसलिये मिथ्यात्व को त्याग कर सम्यक्त्व को धारण करना इष्ट है। इस प्रकार मालारोहण ग्रन्थ में सम्यग्दर्शन की प्रमुखता से कथन किया गया है। भगवान महावीर स्वामी के समवशरण में राजा श्रेणिक ने ज्ञान गुण माला को प्राप्त करने का उपाय पूछा था, वह मार्मिक प्रसंग भी बहुत सुन्दरता से मालारोहण ग्रन्थ में प्रतिपादित किया गया है। जो भी मुक्ति गये अभी तक, जा रहे हैं या जावेंगे । शुद्ध स्वभाव की करके साधना, वे मुक्ति को पावेंगे | जिनवर कथित धर्म यह सच्चा, दिव्य अलौकिक लोचन है। भेदज्ञान युत सम्यग्दर्शन, यही तो मालारोहण है ॥ श्री पण्डित पूजा जी पण्डित पूजा, विचार मत का दूसरा ग्रन्थ है, इसमें ३२ गाथायें हैं, सम्यग्ज्ञान इस ग्रन्थ का प्रमुख विषय है। सच्चे देव, गुरु, धर्म, शास्त्र, पूजा की विधि, ज्ञानी का स्वरूप, पूजा करने के विधान में विकारों का प्रक्षालन, धर्म के वस्त्र, दृष्टि की शुद्धता, शुद्धात्म देव का दर्शन और आध्यात्मिक पूजा का फल, मुक्ति की प्राप्ति इत्यादि विषयों का इस ग्रन्थ में सांगोपांग विवेचन किया गया है। सम्यग्ज्ञान के बिना कोई भी क्रियायें आत्म हितकारी नहीं होती। मुक्ति मार्ग में सम्यग्ज्ञान की प्रधानता
SR No.009715
Book TitleGyanodaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
PublisherTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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