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ज्ञान विज्ञान भाग -२
१३. प्रवचन भक्ति, १४. आवश्यक अपरिहाणि, १५. मार्ग प्रभावना, १६. प्रवचन वत्सलत्व । दस लक्षण धर्म- १. उत्तम क्षमा, २. उत्तम मार्दव, ३. उत्तम आर्जव, ४. उत्तम सत्य, ५. उत्तम शौच, ६. उत्तम संयम, ७. उत्तम तप, ८. उत्तम त्याग, ९. उत्तम आकिंचन्य, १०. उत्तम ब्रह्मचर्य। सम्यग्दर्शन के आठ अंग - १. निःशंकित, २. निःकांक्षित, ३. निर्विचिकित्सा, ४.अमूढ़ दृष्टि, ५. उपगूहन,६. स्थितिकरण, ७. वात्सल्य, ८. प्रभावना। सम्यग्ज्ञान के आठ अंग - १. शब्दाचार,२. अर्थाचार,३. उभयाचार, ४. कालाचार, ५. विनयाचार, ६. उपधानाचार,७. बहुमानाचार, ८. अनिह्नवाचार । तेरह प्रकार का चारित्र- पाँच महाव्रत - अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह । पाँच समिति - ईर्या समिति, भाषा समिति, एषणा समिति, आदान निक्षेपण समिति, प्रतिष्ठापना समिति।
तीन गुप्ति - मन गुप्ति, वचन गुप्ति, काय गुप्ति । प्रश्न - निश्चय से देव पूजा की विधि क्या है ? उत्तर - सिद्ध परमात्मा के समान अपने शुद्ध स्वरूप मय होना अर्थात् अपने चैतन्य स्वरूप में उपयोग
को लगाना निश्चय से देव पूजा की विधि है। प्रश्न - देव पूजा का क्या फल है? उत्तर - देव पूजा से वर्तमान जीवन में जीव, सुख-शांति-आनंद में रहता है और परम्परा सद्गति,
मुक्ति की प्राप्ति होती है। प्रश्न - आचार्य तारण स्वामी ने किन-किन ग्रन्थों में देवपूजा का वर्णन किया है? उत्तर १. आचार्य श्री तारण स्वामी जी ने श्री मालारोहण जी ग्रन्थ की ११ वीं गाथा में ७५ गुणों के
द्वारा देव पूजा का विधान स्पष्ट किया है। २. तारण तरण श्रावकाचार ग्रन्थ में गाथा ३२३ से ३६६ तक ७५ गुणों की आराधना पूर्वक सच्चे देव का स्वरूप और देव पूजा का विस्तृत विवेचन किया है। ३. श्री पण्डित पूजा जी ग्रन्थ में सच्चे देव, गुरु,धर्म,शास्त्र की महिमा सहित पूजा का विशद् वर्णन किया है। तारण समाज में मन्दिर विधि के माध्यम से सच्चे देव, गुरु, धर्म, शास्त्र की पूजा आराधना की जाती है।
मैं मोह रागादिक विकारों से रहित अविकार हूँ। ऐसी निजातम स्वानुभूतिमय समय का सार हूँ | यह निर्विकल्प स्वरूपमयता वास्तविक पूजा यही । जो करे अनुभव गुण पचहत्तर से भविकजन है वही ॥
(अध्यात्म आराधना छंद - २१)