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________________ ज्ञान विज्ञान भाग -२ पाठ -३ देव पूजा विधि प्रश्न - हमारा इष्ट कौन है? उत्तर - हमारा इष्ट निज शुद्धात्मा है। प्रश्न - हमें पूज्य क्या है? उत्तर - हमें वीतरागता पूज्य है। प्रश्न - सच्चे देव का स्वरूप क्या है ? - जो वीतरागी, सर्वज्ञ, हितोपदेशी होते हैं वे सच्चे देव कहलाते हैं। प्रश्न - वीतरागी, सर्वज्ञ, हितोपदेशी का क्या अभिप्राय है? उत्तर - वीतरागी- जो मोह, राग द्वेषादि विकारों से रहित होते हैं उन्हें वीतरागी कहते हैं। सर्वज्ञ-जो संसार के समस्त पदार्थों और उनकी त्रिकालवर्ती पर्यायों को जानते हैं वह सर्वज्ञ कहलाते हैं। हितोपदेशी- जो दिव्यध्वनि द्वारा जगत के जीवों को आत्म हितकारी उपदेश देते हैं उन्हें हितोपदेशी कहते हैं। प्रश्न - निश्चय से सच्चा देव कौन है। उत्तर - रत्नत्रयमयी निज शुद्धात्मा ही निश्चय से सच्चा देव है। प्रश्न - देव कहाँ है ? इस संबंध में आचार्य तारण स्वामी, योगीन्दु देव आदि आचार्यों का क्या मत है? उत्तर - सभी वीतरागी आचार्य कहते हैं कि देव देह देवालय में वास करता है जो चैतन्य स्वरूपी है। प्रश्न - पूजा किसे कहते हैं, व्यवहार से देव पूजा की विधि क्या है ? उत्तर - पूजा का अर्थ है पूजना अर्थात् पूर्ण करना । अपने शुद्धात्म स्वरूप के आश्रय से पर्याय की अशुद्धि और कमी को दूर कर पूर्णता को उपलब्ध करने को पूजा कहते हैं। ७५ गुणों के द्वारा अरिहंत सिद्ध परमात्मा का और अपने आत्म स्वरूप का चिन्तन मनन आराधन करना व्यवहार से देव पूजा की विधि है। प्रश्न - ७५ गुण कौन-कौन से हैं? उत्तर - देव के पाँच गुण- पाँच परमेष्ठी - अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधु । गुरु के तीन गुण - तीन रत्नत्रय-सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र । शास्त्र के चार गुण - चार अनुयोग - प्रथमानुयोग, करणानुयोग, चरणानुयोग, द्रव्यानुयोग। सिद्ध के आठ गुण- सम्यक्त्व, दर्शन, ज्ञान, अगुरुलघुत्व, अवगाहनत्व, सूक्ष्मत्व, वीर्यत्व और अव्याबाधत्व। सोलह कारण भावना-१.दर्शन विशुद्धि, २. विनय संपन्नता, ३.शील व्रतों का निरतिचार पालन, ४. अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोग, ५. संवेग, ६. शक्तितः त्याग, ७. शक्तितः तप, ८. साधु समाधि, ९. वैयावृत्य करण,१०. अर्हन्त भक्ति,११. आचार्य भक्ति, १२. बहुश्रुत भक्ति,
SR No.009715
Book TitleGyanodaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
PublisherTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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