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ज्ञान विज्ञान भाग -२
शास्त्र कहते हैं। प्रश्न - सच्चा धर्म क्या है, जिसकी श्रद्धा करना चाहिये? उत्तर निश्चय से आत्मा का चेतन लक्षण स्वभाव धर्म है और व्यवहार से रत्नत्रय, उत्तमक्षमा आदि
भाव धर्म है जिसका श्रद्धान आराधन करना चाहिये। इस प्रकार श्रावक सच्चे देव गुरु शास्त्र
धर्म का श्रद्धानी होने से श्रद्धावान कहलाता है। प्रश्न - विवेकवान का क्या अभिप्राय है? उत्तर - विवेकवान का अभिप्राय है-हित अहित के विवेक पूर्वक अपने आत्म कल्याण करने में सावधान
रहना। प्रश्न - भेदज्ञान, तत्त्व निर्णय का अभ्यास किस प्रकार करना चाहिये?
- भेदज्ञान- इस शरीर आदि से भिन्न मैं एक अखण्ड अविनाशी चैतन्य तत्त्व भगवान आत्मा हूँ,
यह शरीर आदि मैं नहीं और यह मेरे नहीं। तत्त्व निर्णय- जिस जीव का जिस द्रव्य का जिस समय जैसा जो कुछ होना है वह अपनी
तत्समय की योग्यतानुसार हो रहा है और होगा, इसे कोई टाल फेर बदल सकता नहीं। प्रश्न - क्रियावान होने का क्या अर्थ है ? उत्तर - क्रियावान होने का अर्थ है - अन्याय, अनीति और अभक्ष्य का त्याग । श्रावक सांसारिक
जीवन में घर-व्यापार आदि के कार्यों को न्याय नीति पूर्वक करता है और बाईस प्रकार के अभक्ष्य का सेवन नहीं करता इसलिए श्रावक क्रियावान होता है।
की आवश्यक
क क्रियाएँ
श्रावक की
सम्यक्त्व यथार्थ अनान ..
रत्नत्रय की साधना
अष्ट मूलगुणों का पालन पंच उवम्बर, तीन मकार का त्याग
सप्त व्यसन का त्याग जुआ खेलना, मांस, मय, वेश्यागमन, शिकार, चोरी, परस्त्री रमण का त्याग,
चारकामना आहारकान, भांधिवान, ज्ञानहान, अभय कान
रात्रि भोजन त्याग
जल छानकर प्रयोग करना
ओला
| बहुबीज
कंदमूल
विष
| बाईस अभक्षय
तुषार
मधु
घोरबड़ा
बैंगन
मिट्टी
| मांस
मदिरा पान
| तुच्छ
फल
चलित | मक्ख
निशि भोजन
संधान
रस
श्रावक के षट् आवश्यक
देव आराधना, गुरु उपासना
शास्त्र स्वाध्याय, संयम