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________________ ज्ञान विज्ञान भाग-२ उन्होंने सच्चे देव, गुरु, शास्त्र और धर्म के स्वरूप को यथार्थ रूपेण समझकर आत्मकल्याण करने की देशना दी और धर्म को जाति-पांति के बंधन से परे मनुष्य मात्र को समझाया। इससे सिद्ध होता है कि देव, गुरु,धर्म की आराधना में आई हुई विकृतियों को दूर करने के लक्ष्य से उन्होंने शुद्ध अध्यात्म के मार्ग को प्रशस्त किया। इस प्रकार सत्यमार्ग से विचलित हुए प्राणियों को सन्मार्ग में स्थित करना उनकी आध्यात्मिक क्रांति का प्रमुख उद्देश्य था। उपसर्ग और अतिशय - आध्यात्मिक मार्ग में अबाध गति से चलते रहने के कारण उनके वीतरागता के प्रभाव को बढ़ते देखकर सत्यधर्म के विरोधी वर्ग द्वारा तारण स्वामी को जहर दिया गया, जिसका कोई भी प्रभाव उन पर नहीं हुआ, तब दूसरी बार तारण स्वामी को बेतवा नदी के गहरे जल में डुबाया गया। तीन बार डुबाने से तीनों स्थानों पर टापू बन गए जो आज मल्हारगढ़ के निकट बेतवा नदी में जिन तारण की गौरव गाथा गा रहे हैं। उन पर और भी अनेक उपसर्ग हुए किन्तु वे अपने पथ से विचलित नहीं हुए। तारण तरण श्रीसंघ परिचय - आचार्य प्रवर श्रीमद् जिन तारण तरण मण्डलाचार्य जी महाराज के विशाल संघ में ७ मुनिराज, ३६ आर्यिकायें, २३१ ब्रह्मचारिणी बहिनें, ६० व्रती श्रावक एवं ४३,४५,३३१ शिष्य थे। श्रीसंघ के मुनिराजों के नाम श्री हेमनन्दि जी, श्री चित्रगुप्त जी, श्री चन्द्रगुप्त जी, श्री जयकीर्ति जी, श्री समन्तभद्र जी, श्री समाधिगुप्त जी, श्री भुवनन्द जी महाराज। श्रीसंघ की ३६ आर्यिकायें १. कमल श्री, २. चरन श्री, ३. करन श्री, ४. सुवन श्री, ५. हंस श्री, ६. औकास श्री, ७. दिप्ति श्री, ८. सुदिप्ति श्री, ९. अभय श्री,१०. स्वर्क श्री, ११. अर्थ श्री,१२. विंद श्री,१३.नंद श्री, १४. आनन्द श्री, १५. समय श्री,१६. हिय रमन श्री, १७. अलष श्री, १८. अगम श्री १९. सहयार श्री २०. रमन श्री, २१. सुइरंज श्री, २२. सुइ उवन श्री, २३. षिपन श्री, २४. ममल श्री, २५. विक्त श्री २६. सुइ समय श्री, २७. सुनंद श्री,२८.हिययार श्री,२९.जान श्री, ३०. जयन श्री,३१. लखन श्री ३२. लीन श्री,३३. भद्र श्री, ३४. मइ उवन श्री, ३५. सहज श्री, ३६. पय उवन श्री,। प्रमुख शिष्यों के नाम - रुइयारमण, विरउ ब्रह्मचारी, कमलावती, लुकमानशाह, चिदानंद चौधरी, दयालप्रसाद, लक्ष्मण पाण्डे, खेमराज पाण्डे, हियनन्द कुमार, तेजकुमार तारण, डालू, मनसुख, वैद्य, पाताले आदि प्रमुख शिष्य थे। आचार्य पद व समाधि आचार्य तारण स्वामी मुनि पद पर ६ वर्ष ५ माह १५ दिन रहे। उनकी पूर्ण आयु ६६ वर्ष ५ माह १५ दिन की थी। मिति ज्येष्ठ वदी छठ विक्रम सम्वत् १५७२ (ई. सन्१५१५) में उन्होंने समाधिपूर्वक देह का त्याग किया। तारण तरण तीर्थक्षेत्र - १.श्री पुष्पावती (बिलहरी)- श्री तारण स्वामी की जन्म स्थली है, जो कटनी जिले में कटनी से १६
SR No.009715
Book TitleGyanodaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
PublisherTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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