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________________ ज्ञान विज्ञान भाग -२ ज्ञान विज्ञान भाग -२ पाठ-1 आचार्य तारण तरण परिचय परिचय आचार्य प्रवर श्रीमद् जिन तारण तरण मण्डलाचार्य जी महाराज महान अध्यात्मवादी संत ज्ञानी महापुरुष थे। वे सोलहवीं शताब्दी में हुए थे। उनका जन्म मिति अगहन सुदी सप्तमी विक्रम सम्वत्१५०५ (ई. सन्१४४८) में पुष्पावती नगरी में हुआ था। पुष्पावती को वर्तमान में बिलहरी कहा जाता है, यह स्थान कटनी जिले में कटनी से १६ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। श्री तारण स्वामी के पिता का नाम श्री गढ़ाशाह जी और माता जी का नाम श्रीमती वीरश्री देवी था। तारण स्वामी के मामा श्री लक्ष्मण सिंघई सेमरखेड़ी में रहते थे। पाँच वर्ष की बाल्यावस्था में उनके माता-पिता उन्हें सेमरखेड़ी ले आये थे। उनकी शिक्षा सेमरखेड़ी और सिरोंज में हुई। धार्मिक शिक्षा प्राप्त करने के लिए वे चंदेरी गये वहाँ भट्टारक देवेन्द्र कीर्ति जी के सान्निध्य में धर्म ग्रन्थों का अध्ययन किया तथा स्वयं स्वाध्याय-मनन के द्वारा वस्तु स्वरूप का विशेष ज्ञान अर्जित किया। तारण स्वामी बचपन से ही अत्यंत प्रज्ञावान और वैराग्यवान थे। ११ वर्ष की बाल्यावस्था में उन्हें सम्यग्दर्शन की प्राप्ति हुई। २१ वर्ष की किशोरावस्था में आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत का संकल्प किया और सेमरखेड़ी के वन में स्थित गुफाओं में आत्म साधना करने लगे। उनकी वैराग्य भावना निरन्तर वृद्धिंगत हो रही थी। संसार से विरक्ति एवं धर्म में अनुरक्ति होने से माँ की ममता और पिता की आशाएँ बहुत पीछे छूटती जा रहीं थीं फिर भी माता-पिता का आशीर्वाद उन्हें प्राप्त था। ३० वर्ष की युवावस्था में उन्होंने सप्तम ब्रह्मचर्य प्रतिमा धारण की। आत्म निरीक्षण, धर्म आराधना करते हुए उन्होंने संयम-तप की कसौटी पर अपने आपको परख लिया। जनरंजन राग, कलरंजन दोष, मनरंजन गारव को ज्ञान की साधना पूर्वक दूर किया और ६० वर्ष की उम्र में मिति अगहन सुदी सप्तमी, विक्रम सम्वत् १५६५ में उन्होंने वीतरागी मुनि दीक्षा धारण की। उनके वीतरागी व्यक्तित्व से प्रभावित होकर लाखों लोग उनके शिष्य बने। श्री नाममाला ग्रन्थ के अनुसार उनकी शिष्य संख्या तिरतालीस लाख पैंतालीस हजार तीन सौ इकतीस (४३,४५,३३१) है। आचार्य तारण स्वामी के शिष्यों के १५१ मण्डल थे। जिनके प्रमुख आचार्य श्री तारण स्वामीजीथे इसलिये उन्हें मण्डलाचार्य कहा जाता है। - आध्यात्मिक क्रांति का उद्देश्यआचार्य श्री जिन तारण स्वामी ने जो आध्यात्मिक क्रांति की उसका उद्देश्य जन-जन को धर्म के नाम पर होने वाले आडम्बर और जड़वाद से मुक्त कर आत्म कल्याण का यथार्थ मार्ग प्रशस्त करना था। उन्होनें आगम में से शुद्ध अध्यात्म को निकाला । कुछ महानुभावों का मत है कि उस समय मुगलों का शासन था और उन लोगों द्वारा जैन धर्म और हिन्दू समाज के धार्मिक स्थलों पर आक्रमण कर मंदिरों को तोड़ा-फोड़ा जा रहा था इस कारण तारण स्वामी ने अध्यात्म का मार्ग अपना लिया किन्तु मुगलकालीन आक्रमण की घटनाओं से स्वामी जी की आध्यात्मिक क्रांति का संबंध नहीं है। वास्तविकता यह है कि
SR No.009715
Book TitleGyanodaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
PublisherTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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