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ज्ञान विज्ञान भाग -१
पाठ-७
गति बोध गति की परिभाषा और भेद
जीव की अवस्था विशेष को गति कहते हैं। गति के चार भेद हैं - नरक गति, तिर्यंच गति, मनुष्य गति, देव गति। नरकगति का स्वरूप, भेद और स्थान
नरक गति नाम कर्म के उदय से नरक पर्याय में जन्म होने को नरक गति कहते हैं। इस गति में जन्म लेने वाले जीव नारकी कहलाते हैं। नरकों की सात भूमियाँ होती हैं - रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, बालुकाप्रभा, पंकप्रभा, धूमप्रभा, तमप्रभा, महातम प्रभा। यह सात नरक भूमियाँ इस पृथ्वी के नीचे-नीचे की ओर हैं। नरकों में तीव्र गर्मी, तीव्र सर्दी और अत्यन्त दुर्गन्ध रहती है। भूख-प्यास बहुत लगती है किन्तु अन्न का एक दाना और पानी की एक बूंद भी नहीं मिलती। वहाँ की आयु कम से कम दस हजार वर्ष और अधिक से अधिक ३३ सागर होती है। वहाँ दुःख ही दुःख हैं। आयु पूर्ण हुए बिना नारकी जीवों का मरण नहीं होता। नरक में जाने का कारण -
सात व्यसनों का सेवन करना, बहुत आरंभ-परिग्रह में आसक्त रहना, हिंसादि पाप करना, तीव्र बैर विरोध के भाव रखना, मद्य-माँस आदि का सेवन करना। इन पाप परिणामों से जीव नरक में जाता है। तिथंच गति का स्वरूप
तिर्यंच गति नाम कर्म के उदय से तिर्यंच पर्याय में जन्म होने को तिर्यंच गति कहते हैं। हाथी, घोड़ा,कुत्ता, बिल्ली, लट, चींटी, भौंरा आदि तिर्यंच गति के जीव हैं। तिथंच गति के दुःख
तिर्यंच गति में जन्म-मरण, भूख-प्यास, छेदन-भेदन,वध-बंधन, भारवहन आदि असंख्यात दुःख हैं। तिथंच गति में जाने का कारण -
मायाचारी करना, परिग्रह में मूर्च्छित रहना, मिथ्या मार्ग का उपदेश देना, कपट भाव रखना, दुर्जन स्वभाव होना, कम भाव वाली वस्तु अधिक भाव वाली वस्तु में मिलावट करके बेचना, बड़ों का अपमान करना, दूसरों पर झूठा दोषारोपण करना इत्यादि कार्य करने से जीव तिर्यंच गति में जाता है। मनुष्य गति का स्वरूप
मनुष्य गति नाम कर्म के उदय से मनुष्य पर्याय में जन्म लेने को मनुष्य गति कहते हैं। पुरुष -स्त्री, बालक-बालिका यह मनुष्य गति के जीव हैं। मनुष्य गति के दुःख -
मनुष्य गति में गर्भ अवस्था और जन्म के अत्यंत दुःख हैं। बाल अवस्था में अज्ञानता का दुःख है तथा पराधीनता, भूख-प्यास, मानहानि, रोग, दरिद्रता, दासता, वृद्धावस्था आदि के दुःख प्रत्यक्ष दिखाई देते हैं। मनुष्य गति में जन्म लेने का कारण
विनम्र होना, सरलता-सहजता होना, अल्प आरंभ, अल्प परिग्रही होना, मंद कषाय एवं भद्र प्रकृति होना, धर्म कार्य में रुचि होना, दया-दान परोपकार करना, मृदुभाषी होना, समता धारण करना आदि परिणाम मनुष्य गति में जन्म लेने के कारण हैं।