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________________ ज्ञान विज्ञान भाग - १ - मनुष्य की विशेषता जो विचारवान, विवेकवान है और मन के द्वारा हेय - उपादेय, तत्त्व अतत्त्व एवं धर्म-अधर्म का स्वरूप समझने की जिसमें योग्यता है, यही मनुष्य की विशेषता है। मनुष्यों का निवास - १६ मनुष्य अढ़ाई द्वीप-जम्बूद्वीप, धातकी खण्ड और पुष्करार्धद्वीप में रहते हैं। मानुषोत्तर पर्वत के आगे मनुष्य नहीं जा सकते । देव गति का स्वरूप देव गति नाम कर्म के उदय से देव पर्याय में उत्पन्न होने को देवगति कहते हैं । भवनवासी, व्यंतर, ज्योतिषी और वैमानिक देव गति के भेद हैं। देव गति के दुःख - दूसरे देवों के ऐश्वर्य एवं ऋद्धियों को देखकर ईर्ष्या करना, अधिक से अधिक विषयों की चाह की दाह में जलना, मरण के ६ माह पूर्व गले की मंदार माला मुरझाने पर संक्लेश भाव करना आदि देवगति के दुःख हैं । देवगति में जन्म लेने का कारण - स्वभाव में सरलता होना, व्रतों का पालन करना, सम्यक्त्व होना, सराग संयम, संयमासंयम, अकाम निर्जरा, बालतप, दान-पुण्य आदि के परिणामों से जीव देवगति में जाता है। देव की विशेषता - जो 'इच्छानुसार नाना प्रकार की विक्रिया करते हैं, आठ ऋद्धियों से युक्त होते हैं और जिनका प्रकाशमान दिव्य शरीर होता है, उन्हें देव कहते हैं। चारों गतियों में सबसे अच्छी गति कौनसी है चारों गतियों में कोई गति अच्छी नहीं है। मनुष्य गति को सबसे अच्छी गति इसलिये कहा है क्योंकि मनुष्य गति से ही मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस गति में जीव संयम तप को धारण करके मोक्ष प्राप्त कर सकता है इसलिये मनुष्य गति सबसे अच्छी गति है सबसे खराब तियंच गति है क्योंकि वहाँ निगोद में एक श्वास में अठारह बार जन्म-मरण होता है और ज्ञान का क्षयोपशम अक्षर के अनंतवें भाग प्रमाण रहता है। ज्ञान ही जीव का लक्षण है और वही तियंच गति में सबसे कम होता है इसलिये तियंच गति सबसे खराब गति है। - संसारातीत सिद्ध भगवान सिद्ध भगवान चारों गति के परिभ्रमण से मुक्त हैं इसलिये वे चार गतियों में से किसी भी गति के जीव नहीं हैं। कर्म रहित हो जाने से वे संसारातीत सिद्ध गति के जीव कहलाते हैं । पंडित कर्म अस्ट विनिर्मुक्तं मुक्ति स्थानेषु तिस्टिते । I सो अहं देह मध्येषु, यो जानाति स पंडिता ॥ आठ कर्मों से रहित सिद्ध परमात्मा जो मुक्ति स्थान सिद्ध क्षेत्र में विराजते हैं, वैसा ही मैं | सिद्ध स्वरूपी परमात्मा इस देह में विराजमान हूँ, जो तत्त्व ज्ञानी ऐसा जानता है वही पंडित है।
SR No.009715
Book TitleGyanodaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
PublisherTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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