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ज्ञान विज्ञान भाग-१
इनका स्वरूप समझ में नहीं आया। जिनेश - वह भी समझ में आ जाएगा। देखो भाई! जिन पदार्थों के खाने से अनेक त्रस जीवों का घात
होता है, उन्हें बहु त्रस घात अभक्ष्य कहते हैं। जैसे- पाँच उदम्बर फल, घुना हुआ अनाज,
डबलरोटी, फूलगोभी, मर्यादा रहित अचार, मर्यादा रहित पापड़ आदि । दिनेश - और बहु स्थावर घात अभक्ष्य क्या होता है ? जिनेश - जिन पदार्थों के सेवन से अनन्त स्थावर जीवों का घात होता है उन्हें बहु स्थावर घात अभक्ष्य
कहते हैं। जैसे - मूली, गाजर, लहसुन, प्याज, शकरकंद, आलू, अदरक आदि। दिनेश - ओह ! एक रसना इन्द्रिय के विषय में फंसकर हम कितने जीवों की हिंसा कर रहे हैं! जिनेश - भाई, यही तो समझना है कि जीव इन्द्रियों के विषय में फंसकर ही असंयम और पाप करता
है। इन्द्रियों पर काबू पाना ही संयम कहलाता है। दिनेश - बहुत अच्छा, अब प्रमाद कारक अभक्ष्य के संबंध में समझायें? जिनेश - जिन पदार्थों के खाने या सेवन करने से प्रमाद तथा विषय विकार बढ़ता है और नशा चढ़ता है
उन्हें प्रमादकारक या मादक अभक्ष्य कहते हैं।
जैसे- शराब, गांजा, भांग, अफीम आदि। दिनेश - बीड़ी, तम्बाकू, पाउच आदि भी अभक्ष्य हैं क्या ? जिनेश - हाँ-बीड़ी, तम्बाकू, सिगरेट, पाऊच आदि सभी नशीली चीजें हैं, इसलिये यह सब भी मादक
अभक्ष्य ही हैं। दिनेश - यह अनिष्टकारक अभक्ष्य क्या होता है? जिनेश - जो पदार्थ भक्ष्य होने पर भी प्रकृति के विरुद्ध हों, उन्हें अनिष्टकारक अभक्ष्य कहते हैं।
जैसे-हैजा के रोगी को जल, वायु रोगी को चने की दाल, खांसी वाले को दही, घी आदि। दिनेश - अरे! जल, चने की दाल, घी आदि पदार्थ तो भक्ष्य हैं, फिर भी उन्हें अभक्ष्य कहा जा रहा है। जिनेश - जैन दर्शन आत्मा को स्वस्थ रखने के साथ-साथ शरीर को भी स्वस्थ रखने की कला सिखाता
है। जल आदि पदार्थ सेवन करने योग्य होने पर भी रोग के समय सेवन करने पर हानिकारक हैं,
इसलिये उन्हें अनिष्टकारक कहा गया है। दिनेश - और यह अनुपसेव्य अभक्ष्य का क्या स्वरूप है ? जिनेश - जो पदार्थ सेवन करने योग्य न हों उन्हें अनुपसेव्य अभक्ष्य कहते हैं। जैसे- पान का
उगाल, मूत्र, लार आदि। दिनेश - अभक्ष्य पदार्थों के सेवन करने से हिंसा तो होती ही है, क्या और भी हानियाँ होती हैं ? जिनेश - अभक्ष्य पदार्थों के सेवन करने से बहु हिंसा का दोष लगता है, इसके साथ-साथ और भी
हानियाँ हैं। जैसे- हेय, उपादेय का ज्ञान नहीं रहता, मन चंचल रहता है, बुद्धि भ्रमित रहती
है, पुण्य क्षय होता है, पाप बढ़ता है और अन्त में नरक आदि दुर्गतियों के दुःख भोगना पड़ते हैं। दिनेश - ओह ! अभक्ष्य पदार्थों के सेवन से इतना अहित होता है, मेरा तो हृदय कांप गया । वास्तव में
हिंसा आदि पापों से बचने के लिए अभक्ष्य का त्याग कर नैतिकता एवं सदाचार का पालन करना
चाहिये। सदाचार से ही सद्गति प्राप्त होती है और जीवन सुखमय बनता है। जिनेश - सदाचार की महिमा ही ऐसी है कि सदाचार, पतित मनुष्य को भी उन्नति के मार्ग में लगा देता