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ज्ञान विज्ञान भाग -१
पाठ-५
सदाचार दिनेश - भाई साहब ! जय तारण तरण ॥ जिनेश - जय तारण तरण दिनेश ! तुम्हारी पाठशाला की पढ़ाई कैसी चल रही है? दिनेश - पाठशाला की पढ़ाई ठीक चल रही है। कल गुरुजी ने अभक्ष्य त्याग और सदाचार के बारे में
समझाया था, इस विषय को पुनः आपसे समझना है। जिनेश - हाँ-हाँ बहुत अच्छा ! जिज्ञासा होने पर ही धर्म की समझ प्रगट होती है। देखो भाई नैतिकता
का पालन और अभक्ष्य पदार्थों का सेवन नहीं करना ही सदाचार है। दिनेश - अभक्ष्य किसे कहते हैं, उसके भेदों के बारे में समझायें? जिनेश - जो पदार्थ खाने योग्य नहीं होते उन्हें अभक्ष्य कहते हैं। बाईस प्रकार के अभक्ष्य प्रसिद्ध हैं, मैं
छंद के द्वारा अभक्ष्य के नाम बताता हूँ। दिनेश - हाँ, भाई साहब, अवश्य बतायें। छंद से तो जल्दी समझ में आ जाएगा और याद भी जल्दी हो
जायेगा। जिनेश - अच्छा तो सुनो -
ओला, घोरबड़ा, निशिभोजन, बहुबीजा, बैंगन, संधान | बड़, पीपल, ऊमर, कठूमर, पाकर, जो फल होय अजान || कन्दमूल, माटी, विष, आमिष, मधु, माखन, अरु मदिरापान ।
फल अति तुच्छ, तुषार, चलित रस, जिनमत ये बाईस अखान ॥ दिनेश - इस छंद का अर्थ बतायें तो बहुत अच्छा होगा। जिनेश - ओला (बर्फ), दही बड़ा (यह द्विदल है अर्थात् उड़द, मूंग, चना, मसूर आदि जिनके समान
दो टुकड़े हो जाते हैं ऐसे अन्न से बनी चीजों को दूध, दही, मही के साथ खाने से द्विदल होता है, द्विदल में मुख की लार का संयोग होने से अनेक जीव उत्पन्न हो जाते हैं। रात्रि भोजन। बहुबीजा - ऐसे फल जिनके बीजों का अलग-अलग स्थान न हो जैसे -कुचला, बैंगन, कचरिया, टमाटर आदि । बैंगन, अचार, पाँच उदम्बर फल तथा जिसे पहिचानते न हों ऐसा अज्ञात फल । कन्दमूल - मूली, गाजर, प्याज, लहसुन, शकरकंद आदि। मिट्टी, विष, मधु, मांस, मक्खन, मदिरा, तुच्छ फल। जिस शाक या फल में बीज न आये हों। तुषार,
चलित रस - जिसका स्वाद बदल गया हो। यह बाईस अभक्ष्य कहलाते हैं। दिनेश - क्या अभक्ष्य के दूसरे प्रकार से भी भेद होते हैं? जिनेश - हाँ, अभक्ष्य के दूसरे प्रकार से पाँच भेद होते हैं - १. बहु त्रस घात अभक्ष्य,
२. बहु स्थावर घात अभक्ष्य ३. प्रमादकारक या मादक अभक्ष्य
४. अनिष्टकारक अभक्ष्य ५. अनुपसेव्य अभक्ष्य । दिनेश - यह तो बहुत अच्छी तरह समझ में आ गया कि अभक्ष्य के दूसरे प्रकार से भी भेद हैं, लेकिन