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प्रश्न ३ - पारिणामिक भाव किसे कहते हैं ? उत्तर - जो भाव कर्मों के उदय, उपशम, क्षय और क्षयोपशम की अपेक्षा नहीं रखता है, जो जीव का
स्वभाव मात्र है उसे पारिणामिक भाव कहते हैं। प्रश्न ४ - सर्वश्रेष्ठ पद प्राप्त करने का क्या उपाय है? उत्तर - रागादि विभाव रूप पर्याय से उपयोग हटाकर ममल स्वभाव के श्रद्धान, ज्ञान, ध्यान में लीन
होना सर्वश्रेष्ठ पद प्राप्त करने का उपाय है। प्रश्न ५ - आत्मानुभव का फल क्या है? उत्तर - वर्तमान जीवन में सुख शांति की उपलब्धि, कर्मों की निर्जरा और मुक्ति की प्राप्ति होना
आत्मानुभव का फल है। प्रश्न ६ - मोह को दूर करने का क्या उपाय है? उत्तर - प्रथम, तत्त्व को जिज्ञासा पूर्वक जानना, तत्त्व के रसिक बनना, शरीर को पड़ौसी मानना और
आत्मा का अनुभवन करना मोह को दूर करने का उपाय है। प्रश्न ७ - मोह रागादि भाव क्या हैं? उत्तर - मोह रागादि भाव मन में उत्पन्न होने वाले अज्ञान भाव हैं। प्रश्न ८ - अज्ञान भाव अनिष्ट रूप क्यों हैं ? उत्तर - अज्ञान भाव से जीव तीव्र कर्मों को बांधकर नरक निगोद आदि पर्यायों में जन्म-मरण करता
हुआ भयानक कष्टों को भोगता है इसलिये अज्ञान भाव अनिष्ट रूप हैं। प्रश्न ९ - अज्ञान भाव का नाश कैसे होता है? उत्तर - अनंत चतुष्टयमयी ममल स्वभाव के आश्रय पूर्वक ज्ञायक भाव में रहने से अज्ञान भाव का
नाश होता है। प्रश्न १०- परमात्मा के उपदेश की क्या महिमा है? उत्तर - जिनेन्द्र परमात्मा ने दिव्य ध्वनि में आत्मा परमात्मा की अनुमोदना करने का उपदेश दिया
है। जिनेन्द्र भगवान का उपदेश भव्यजनों को आनंद परमानंद से पोषित करने वाला है। जिन वचनों के श्रद्धान पूर्वक ममल स्वभाव का आश्रय और अनुभव करने से राग द्वेषादि विभाव, शल्य, भय रूप परिणाम, अज्ञान भाव, इन्द्रिय विषय परिणाम तथा कर्मों के समूह क्षय हो जाते हैं। और अनंत ज्ञानमयी स्वरूप में लीन रहने से परमात्म पद सिद्धि मुक्ति की प्राप्ति होती है।
मैं शरीर हूं ऐसे देह में एकत्वपने के कारण यह जीव अनादिकाल से संसार में परिभ्रमण कर रहा है । मैं आत्मा हूं ऐसा सत्श्रद्धान करना, स्व - पर का यथार्थ निर्णय करना और सम्यक्चारित्र पूर्वक स्वरूपस्थ होने की साधना करना इसी में मनुष्यभव की सार्थकता है।