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श्री ममलपाहुड़ जी फूलना - ५ प्रश्न १२- कर्म से कर्म बंधते हैं, इसको उदाहरण द्वारा समझाइये ? उत्तर - जैसे गाय को रस्सी से बांधते हैं, तो रस्सी को रस्सी से बांधते हैं, गाय को रस्सी से नहीं बांधते
हैं। इसी तरह कर्म से कर्म बंधते हैं, जीव से कर्म नहीं बंधते। प्रश्न १३- कर्म कौन सा द्रव्य है? उत्तर - कर्म पुद्गल द्रव्य है। प्रश्न १४- कर्म की उत्पत्ति में कारण कौन है? उत्तर - राग भाव कर्म की उत्पत्ति में कारण है। प्रश्न १५- कर्म के क्षय में कारण क्या है? उत्तर - वीतराग भाव कर्म के क्षय में कारण है। प्रश्न१६ - परम अक्षय का क्या अर्थ है? उत्तर - जो सुख आनंद ज्ञान आदि गुणों से भरपूर परम उत्कृष्ट द्रव्य है, जिसके आनंद का अनंत
काल तक भी भोग किया जावे तब भी सुख आनंद ज्ञान का खजाना कभी अंशमात्र भी कम न
हो यही परम अक्षय का अर्थ है। प्रश्न १७- निर्वाण का क्या अर्थ है ? उत्तर - निर्वाण का अर्थ है जहां आत्मा सर्व राग द्वेष मोह आदि दोषों से मुक्त होकर, सर्व कर्म कलंक
से छूटकर शुद्ध स्वर्ण के समान पूर्ण शुद्ध हो जावे व निरंतर आनंद अमृत का स्वाद लेवे इस प्रकार आत्मा का स्वाभाविक पद में आना ही निर्वाण है।
३-धर्म दिप्ति गाथा (फूलना ) (विषय : धर्म का स्वरूप और धर्म को नमस्कार, तिअर्थ की महिमा)
धम्मु जु उत्तउ जिनवरह, अर्थति अर्थह जोउ ।
भय विनासु भवु जु मुनहु, ममल न्यान परलोउ ॥ १ ॥ भावार्थ :- (जिनवरह उत्तउ) जिनेन्द्र परमात्मा ने कहा है कि (अर्थति अर्थह) प्रयोजनभूत तिअर्थ [ओंकार, हृींकार, श्रींकार मय स्वरूप] को (जु) जो (जोउ) संजोना अर्थात् अनुभव करना, वह (धम्मु) धर्म है (भवु जु) जो भव्य जीव [आत्म धर्म का] (मुनहु) मनन करते हैं, उनके (भय विनासु) भय विनश जाते हैं और (परलोउ) परलोक अर्थात् भविष्य में (ममल न्यान) केवलज्ञान की प्राप्ति होती है।
अर्थति अर्थह भेउ मुनि, लषन रूव संजुत्त ।
ममल न्यान सहकार मउ, भय विनास तं उत्त॥ २ ॥ भावार्थ :- (मुनि) वीतरागी साधु (अर्थह) प्रयोजनीय (अर्थति) रत्नत्रय स्वरूप का (भेउ) वरण करते हैं (लषन) चैतन्य लक्षणमयी (रूव) स्वरूप की साधना में (संजुत्तु) संयुक्त रहते हैं (ममल न्यान सहकार) ममल ज्ञान स्वभाव का आश्रय कर (मउ) उसी में तन्मय रहते हैं (तं) उनके (भय विनास) भय विनश जाते हैं (उत्त) ऐसा जिनेन्द्र भगवान ने कहा है।