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श्री ममलपाहुड़ जी फूलना - ५
आप तिरें पर तारें का अर्थ है, इसी विशेषता के कारण वीतरागी गुरू को तारण तरण कहा
जाता है। प्रश्न ३ - स्व संवेदन ज्ञान किसे कहते हैं ? उत्तर - जिस ज्ञान के वेदन में स्व की सत्ता समाई है, इस ज्ञान को स्वसंवेदन ज्ञान कहते हैं। प्रश्न ४ - लोकालोक को कौन जानता है ? उत्तर - सम्यक्दृष्टि ज्ञानी परोक्ष रूप से एवं केवलज्ञानी प्रत्यक्ष रूप से लोकालोक को जानते हैं। प्रश्न ५ - सूक्ष्म कर्म किसके गलते हैं? उत्तर - जो भव्य जीव अपने रत्नत्रयमयी आत्मस्वरूप के आश्रय से षट्कमल के माध्यम से ध्यान
करते हैं, उन्हीं जीवों के सूक्ष्म कर्म गल जाते हैं अर्थात् क्षय हो जाते हैं। प्रश्न ६ - कर्म किसे कहते हैं, कर्मों का क्या कार्य है और ये क्षय कैसे होते हैं ? उत्तर - राग-द्वेषादि विभावों के निमित्त से जो कार्माण वर्गणायें एक क्षेत्रावगाह रूप आत्मा से संबद्ध
हो जाती हैं उन्हें कर्म कहते हैं। जीव और कर्म का सम्बन्ध अनादि से है, कर्मों के कारण ही आत्मा की अनेक दशायें होती हैं, कर्मों के कारण ही आत्मा को शरीर में रहना पड़ता है। यह
कर्म कलंक आत्म ध्यान रूपी अग्नि में जलकर भस्म अर्थात् क्षय हो जाते हैं। प्रश्न ७ - आश्रव तत्त्व किसे कहते हैं ? उत्तर - आश्रव - जीव की शुभाशुभ भावमय विकारी अवस्था को भावास्रव कहते हैं। उस समय कर्म
योग्य नवीन रजकणों का स्वयं- स्वतः आत्मा के साथ एक क्षेत्रावगाह रूप में आगमन होना
द्रव्यास्रव है। प्रश्न८ - बंध तत्व किसे कहते हैं? उत्तर - बंध - आत्मा का अज्ञान राग द्वेष, पुण्य-पाप रूप विभावों में रुक जाना भाव बन्ध है, उस
समय कर्म के योग्य पुद्गलों का स्वयं - स्वतः जीव के साथ एक क्षेत्रावगाह रूप बंधना द्रव्य
बंध है। प्रश्न ९ - संवर तत्त्व किसे कहते हैं? उत्तर - आत्मा के शुद्ध भाव द्वारा पुण्य-पापरूप अशुद्ध भाव (आस्रव) का रुकना भाव संवर है।
तदनुसार नये कर्मों का आगमन स्वयं-स्वतः रुक जाना द्रव्य संवर है। प्रश्न १०- निर्जरा तत्त्व किसे कहते हैं? उत्तर - निर्जरा-अखण्डानन्द निज शुद्धात्मा के लक्ष्य के बल से आंशिक शुद्धि की वृद्धि और अशुद्ध
अवस्था (शुभाशुभ इच्छारूप) की आंशिक हानि होना भाव निर्जरा है, उस समय खिरने
योग्य कर्मो का स्वयं-स्वतः अंशतः खिर जाना द्रव्य निर्जरा है। प्रश्न ११- कम्मह कम्म सहाई का क्या अर्थ है? उत्तर - कर्म से ही कर्म बंधते हैं अर्थात् कर्म के बन्ध में कर्म ही सहकारी हैं। द्रव्य कर्म से भाव कर्म
होते हैं और भाव कर्म से द्रव्य कर्म बंधते हैं। कर्मो का संपूर्ण परिणमन कर्मों में ही चलता है, जीव का कर्म से कोई संबंध नहीं है।