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________________ ज्ञान विज्ञान भाग-१ उपदेश प्राप्त होता है तथा जगत के जीव आत्म कल्याण का मार्ग प्राप्त करते हैं एवं सिद्ध परमात्मा का ज्ञान भी अरिहंत परमेष्ठी के निमित्त से होता है इसलिए अरिहंत परमेष्ठी को पहले नमस्कार किया जाता है। प्रश्न - शरीर सहित और शरीर रहित कौन-कौन से परमेष्ठी होते हैं ? उत्तर - सिद्ध परमेष्ठी शरीर रहित और अरिहंत, आचार्य, उपाध्याय, साधु यह चार परमेष्ठी शरीर सहित होते हैं। मुक्त और संसारी कितने परमेष्ठी हैं? उत्तर - सिद्ध परमेष्ठी मुक्त हैं तथा शेष चार परमेष्ठी संसारी हैं। प्रश्न - परमेष्ठी के गुणों का स्मरण करने से क्या लाभ है ? उत्तर - परमेष्ठी के गुणों का स्मरण करने से यह बोध होता है कि यह पाँच पद ही परम इष्ट हैं, अन्य कोई भी संसारी पद इष्ट नहीं है। परमेष्ठी के गुणों का स्मरण करने से भगवान बनने का पुरुषार्थ जाग्रत होता है तथा यह ज्ञान होता है कि आत्मा में परमात्मा बनने की शक्ति विद्यमान है। प्रश्न - अरिहंत परमेष्ठी आदि पद आत्मा में होते हैं या अन्यत्र होते हैं? उत्तर - अरिहंत परमेष्ठी आदि पाँचों ही पद आत्मा के निज पद हैं, इन पाँच पदों में से कोई भी पद आत्मा को छोड़कर अन्यत्र नहीं होते। प्रश्न - पंच परमेष्ठी की शरण में जाने से क्या लाभ है? उत्तर - जो जीव व्यवहार से पंच परमेष्ठी की शरण और निश्चय से निज आत्मा की शरण लेता है, वह जीव संसार के जन्म-मरण से छूटकर अविनाशी मुक्ति पद को प्राप्त करता है। पंच परमेष्ठी के १४३ गुण अरिहंत सिद्ध ४६ आचार्य उपाध्याय साधु ३६ २५
SR No.009715
Book TitleGyanodaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
PublisherTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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