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ज्ञान विज्ञान भाग -१
पाठ-२
तीर्थंकर और भगवान प्रश्न - तीर्थकर किसे कहते हैं ? उत्तर - जो मोक्षमार्ग का उपदेश देते हैं, धर्मतीर्थ की स्थापना करते हैं, जिनके तीर्थंकर नाम कर्म की
पुण्य प्रकृति का उदय होता है, जिनके समवशरण लगते हैं तथा गर्भ, जन्म, दीक्षा, ज्ञान और
निर्वाण कल्याणक मनाये जाते हैं उन्हें तीर्थंकर कहते हैं। प्रश्न - तीर्थकर परमात्मा ने क्या उपदेश दिया है ? उत्तर - तीर्थंकर परमात्मा ने द्रव्य की स्वतंत्रता, पुरुषार्थ से मुक्ति एवं वस्तु स्वरूप का यथार्थ निर्णय
कर अपने आत्म स्वरूप को पहिचानने और जन्म-मरण के दुःखों से मुक्त होने का उपदेश
दिया है। प्रश्न - तीन पद के धारी कितने और कौन-कौन से तीर्थकर हुए?
शांतिनाथ, कुन्थुनाथ, अरहनाथ यह तीन तीर्थंकर चक्रवर्ती, कामदेव और तीर्थंकर पद के
धारी हुए। प्रश्न - क्या सभी तीर्थंकरों के पाँच कल्याणक होते हैं? उत्तर - तीर्थंकरों के २,३ और ५ कल्याणक होते हैं, भरत क्षेत्र और ऐरावत क्षेत्र के तीर्थंकरों के गर्भ
आदि पाँचों कल्याणक होते हैं। विदेह क्षेत्र में यदि कोई गृहस्थ अवस्था में तीर्थंकर प्रकृति का बंध करे और उसी भव में उसका उदय हो तो दीक्षा, केवलज्ञान और निर्वाण यह तीन कल्याणक मनाये जाते हैं और यदि कोई जीव मुनि अवस्था में तीर्थंकर प्रकृति का बंध करे और उसका
उदय हो तो केवलज्ञान और निर्वाण दो कल्याणक मनाये जाते हैं। प्रश्न - कल्याणक किसे कहते हैं ? उत्तर - तीर्थंकरों के गर्भ, जन्म, दीक्षा, ज्ञान और निर्वाण के समय देव उत्सव मनाते हैं, इस निमित्त
से भव्य जीवों के अन्तर में धर्म की महिमा जाग्रत होती है और जगत के जीवों को आत्म कल्याण करने की प्रेरणा प्राप्त होती है इसलिए देवों द्वारा मनाये जाने वाले उत्सव को कल्याणक
कहते हैं। प्रश्न - तीर्थकर और अरिहंत भगवान में क्या अन्तर है? उत्तर - चार घातिया कर्मों से रहित और अनन्त चतुष्टय सहित सभी केवलज्ञानी, सर्वज्ञ परमात्मा
अरिहंत भगवान कहलाते हैं, उनमें जिन अरिहंत परमात्मा को तीर्थंकर नाम कर्म की सातिशय पुण्य प्रकृति का उदय होता है उन्हें अरिहंत तीर्थंकर कहते हैं, इनमें निम्नलिखित विशेषताएँ हैंअरिहंत भगवान
तीर्थकर अरिहंत भगवान १. अरिहंत अनेक होते हैं। प्रत्येक अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी काल में तीर्थंकर अरिहंत
भगवान २४ ही होते हैं। २. इनकी माता को १६ इनके गर्भ में आने से पूर्व माता को १६ स्वप्न आते हैं।
स्वप्न नहीं आते।