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श्री ममलपाहुड़ जी फूलना - १
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षिपिय) भय क्षय हो जायेंगे (ससंक विलयंति) सशंकपना विला जायेगा (कम्मं उवनं विलियं) कर्मों का उदय होना विलीन हो जायेगा । [ चारित्र मोहनीय कर्मोदय जनित ] ( भयषिपनिक) भयों को क्षय करने [और अभयपना प्रगट] करने के लिए (ममल पाहुडं बोच्छं) ममल पाहुड़ ग्रन्थ कहता हूँ ।
देव दिप्ति गाथा (सारांश)
देव दिप्ति गाथा आचार्य प्रवर श्रीमद् जिन तारण तरण मंडलाचार्य जी महाराज द्वारा रचित श्री भय षिपनिक ममल पाहुड़ जी ग्रंथ की पहली फूलना है। इस फूलना में सच्चे देव की महिमा बतलाई गई है। देव दिप्ति गाथा का अर्थ है - सच्चे देव के स्वरूप को प्रकाशित करने वाली फूलना । श्री गुरु तारण स्वामी जी ने श्री श्रावकाचार जी, श्री ज्ञानसमुच्चयसार जी आदि ग्रंथों में अरिहंत सिद्ध परमात्मा को सच्चा देव कहा है। अरिहंत भगवान ने चार घातिया कर्मों को और सिद्ध भगवान ने आठ कर्मों को क्षय करके देवत्व पद प्राप्त किया है। यह देवत्व पद स्वरूप के आश्रय पूर्वक शुद्धात्मा में लीन होने से प्रगट होता है। इसलिये निश्चय से निज शुद्धात्मा सच्चा देव है। यह शुद्धात्म स्वरूप प्रत्येक जीव का अपना-अपना स्वभाव है। यह स्वभाव कैसा है ? आचार्य कहते हैं - शुद्धात्म तत्व नंद आनंदमयी चिदानंद स्वभावी है । यही परम तत्व निज स्वभाव है। इसकी अनुभूति करते हुए मैं सिद्ध स्वभाव को नमस्कार करता हूँ। श्री जिनेन्द्र भगवान ने ऐसे महिमामय शुद्धात्म स्वरूप को सिद्ध शुद्ध परम निरंजन ममल स्वभावी कहा है।
आचार्य देव इस फूलना में सार स्वरूप यह कहते हैं कि आत्मा में परमात्म शक्ति विद्यमान है । जो जीव अपने आत्म स्वरूप की शक्ति का बोध अंतर में जाग्रत कर लेते हैं उनके भय क्षय हो जाते हैं, वे निर्भयता पूर्वक मोक्षमार्ग में आगे बढ़ते जाते हैं।
शुद्धात्मा जिसे निश्चय से देव कहा है इसके आश्रय से अंतर में सत्पुरुषार्थ वर्तता है और साधक अरिहंत सिद्ध परमात्मा को आदर्श मानकर स्वयं देवत्व पद प्राप्त करने की साधना करता है। अनंत दर्शन, अनंत ज्ञान, अनंत सुख, अनंत बल से संपन्न परम पद का अपने में ही अनुभव करता है। साधक जानता है कि सम्पूर्ण प्रदेशों में जो सर्वाग ज्ञानमयी है, सूक्ष्म अनुभव गम्य है ऐसा शुद्धात्म देव ही शरणभूत इष्ट और प्रयोजनीय है । अरिहंत सिद्ध परमात्मा भी निज शुद्धात्मा के आश्रय से परम पद को प्राप्त हुए हैं। इसलिये शुद्धात्मा परम देव स्वरूप हितकारी ज्ञान की अनंत दीप्ति से दैदीप्यमान परम श्रेष्ठ है। इसकी साधना और इसमें लीन होने से कर्मों का आसव बंध नहीं होता। आचार्य देव कहते हैं कि ममल स्वभाव की साधना से आत्मा में निहित परमात्म शक्ति की अभिव्यक्ति होती है, भय क्षय होते हैं, शंकायें विलय हो जाती हैं । ममल स्वभाव की साधना से परम पद की प्रगटता होती है इस पवित्र उद्देश्य की पूर्ति हेतु भय षिपनिक ममल पाहुड़ ग्रंथ कहता हूँ ।
प्रश्नोत्तर
प्रश्न १ देव दिप्ति गाथा में किसे नमस्कार किया गया है ?
उत्तर
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प्रश्न २
उत्तर अरिहंत सिद्ध परमात्मा को नमन कर अपना परमात्म परम पद जो स्वयं जिनेन्द्र स्वरूप है उसका अनुभव में आना ही देवदर्शन है।
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देव दिप्ति गाथा में सच्चे देव को नमस्कार किया गया है। व्यवहार से सच्चे देव अरिहंत सिद्ध परमात्मा हैं और निश्चय से सच्चा देव निज शुद्धात्मा है ।
देव दर्शन किसे कहते हैं ?
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