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श्री ममलपाहुड़ जी फूलना - १
१४८ (दिस्टि उवन) दृष्टि में उदित होता है वैसे वैसे] (सहाव जिन) वीतराग परमात्म स्वभाव (उवन) अनूभूति में वर्तता है (उवन मउ) स्वानुभूति में (सब्द) शब्द ब्रह्म परमात्म स्वरूप का (उर्वनउ) उदय हो रहा है (दिस्टि) द्रव्य दृष्टि पूर्वक (उव) ओंकारमयी शुद्धात्म स्वरूप का (उवन) स्वानुभव में (दसंतु) दर्शन करो (उत्तु) यही जिनेन्द्र भगवान ने कहा है।
जंदर्सिउ नंतानंत मउ, न्यान वीर्य विन्यानु ।
नंत सौष्य सुइ परम पउ, तं देइ देउ उवर्वनु ॥ १२ ॥ भावार्थ:-(ज) जो ज्ञानी (विन्यान) भेदविज्ञान के बल से (दर्सिउ नंतानंत) अनंत दर्शन (न्यान) अनंत ज्ञान (नंत सौष्य) अनंत सुख (वीर्य) अनंत बल (मउ) मयी (सुइ परम पउ) स्वयं के परम पद में (देइ) उपयोग लगाता है (तं) उसको (देउ) देव पद (उववंनु) प्रगट हो जाता है।
परम न्यान तं परम पउ, परम भाव सोई भेउ ।
नंतानंत सु देउ पउ, परम देउ सोई देउ ॥ १३ ॥ भावार्थ:-(परम न्यान तं) परम ज्ञानमयी परम पद का धारी (परम भाव) उत्कृष्ट स्वभाव जो (नंतानंत) अनंत चतुष्टयमयी (सु देउ पउ) स्वयं का देव पद है (सोई भेउ) इसी का वरण करो (सोई) यही (देउ) देव [और] (परम देउ) परम देव है।
नो उत्पन्न तं सो जिनई, जिनियो नंतानंत ।
नंत उवन सुइ रमन मउ, जिन जिनवर सुइ उत्तु ॥ १४ ॥ भावार्थ :- (जिनवर उत्तु) जिनेन्द्र परमात्मा कहते हैं कि (नो तं) जिसके अंतर में नो अर्थात् ईषत् [आंशिक रूप से] (जिनई) जिनेन्द्र पद (उत्पन्न) उत्पन्न हुआ है (सो) वह (जिन) अंतरात्मा है (सुइ) वह ज्ञानी (नंत उवन सुइ) स्वभाव की अनंत स्वानुभूति में (रमन मउ) रमण करता हुआ (जिनियो नंतानंत) अनंत कर्मों को जीत लेता है।
परम उवन जो रमन मउ, परम न्यान सुइ जुत्तु ।
परम उवन जु जिनय जिनु, उवर्वन विली जिन उत्तु ॥ १५॥ भावार्थ :-(जिन उत्तु) जिनेन्द्र परमात्मा कहते हैं कि (जो) जो ज्ञानी (परम उवन) श्रेष्ठ स्वानुभूति में (रमन मउ) रमण करता है (सइ) वह (परम न्यान) सम्यग्ज्ञान से (जुत्त) युक्त होता है (ज) (परम उवन) श्रेष्ठ स्वानुभूति में (जिनय जिनु) जिन स्वभाव को जीत लेता है [उसके] (उववन विली) कर्मों का उत्पन्न होना विला जाता है अर्थात् क्षय हो जाता है।
परम सुभावह परम रउ, परम परम जिन उत्तु ।
परम लष्य गम अगम पउ, परम परम जिन उत्तु ॥ १६ ॥ भावार्थ :-(परम) परम पारिणामिक भावमयी (परम सुभावह) श्रेष्ठ स्वभाव में (रउ) रत रहो (जिन उत्तु) जिनेन्द्र परमात्मा ने कहा है कि (परम परम) यही उत्कृष्ट और श्रेष्ठ (परम लष्य) परम लक्ष्य है (अगम) जिसे नहीं जाना था (गम) उसे जान लिया (पउ) प्राप्त कर लिया [यही] (परम परम) सर्वोत्कृष्ट पद है (जिन उत्तु) यही जिनेन्द्र परमात्मा के वचन हैं।
ममलं ममल उवन, भय पिपिय ससंक विलयति ।
कम उवनं विलियं, भय षिपनिक ममल पाहुडं बोच्छं ॥ १७ ॥ भावार्थ :- हे आत्मन् !] (ममलं ममल उवंनं) ममलह ममल स्वभाव के प्रगट होते ही (भय