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________________ छहढाला - छटवीं ढाल (२) जहँ ध्यान ध्याता -------किरिया तहाँ। (छंद याद करके पूर्ण करें) (३) समता सम्हारै ------- अहमेव को। (छंद याद करके पूर्ण करें) (४) जिनके न लेश------- रमि रहैं। (छंद याद करके पूर्ण करें) (ख) मुनिराज के मुखचंद्र से कैसी वाणी निकलती है ? उत्तर - मुनिराज के मुखचंद्र से अमृत के समान मीठी वाणी निकलती है। (ग) अहिंसा और सत्य महाव्रत के क्या लक्षण हैं ? उत्तर - अहिंसा महाव्रत - छहकाय के जीवों का घात न करने का भाव द्रव्य अहिंसा महाव्रत है। राग-द्वेष, काम, क्रोध, मान, माया, लोभ आदि के भावों से दूर रहना भाव अहिंसा महाव्रत है। सत्य महाव्रत - स्थूल और सूक्ष्म दोनों प्रकार से झूठ न बोलना सत्य महाव्रत है। (घ) समिति क्या है ? उत्तर -जीवों की रक्षार्थ यत्नाचार प्रवृत्ति को समिति कहते हैं। मुनिराज अति आसक्ति के अभाव रूप गमन आदि में प्रमाद रूप प्रवृत्ति नहीं करते यही सच्ची समिति है। ईर्या भाषा एषणा, पुनि क्षेपण आदान । प्रतिष्ठापना जुतक्रिया, पाँचों समिति विधान ॥ (ङ) गुप्ति का स्वरूप क्या है ? उत्तर - स्वरूपलीनता रूप वीतराग भाव होने पर मन, वचन, काय की प्रवृत्ति स्वयमेव रुक जाना या योगों का भली-भाँति निग्रह हो जाना गुप्ति है। स्वभावलीनता रूप मन गुप्ति, वचन गुप्ति, काय गुप्ति होती है। मनवचन काय की बाह्य चेष्टाएँ रुक जाना, पाप का चिंतन न करना, गमनादि न करना, सुस्थिर शांत हो जाना ही गुप्ति है। (च) मुनिराज के षट्आवश्यक क्या हैं ? उत्तर - वीतरागी मुनिराज सदा - १. सामायिक २. सच्चे देव शास्त्र की स्तुति ३. जिनेन्द्र वंदना ४. स्वाध्याय ५. प्रतिक्रमण ६. कायोत्सर्ग करते हैं यही षट्आवश्यक हैं। (छ) आत्मा कब कर्ता-कर्म-क्रिया होता है ? उत्तर - वीतरागी मुनिराज स्वरूपाचरण के समय जब आत्मध्यान में लीन हो जाते हैं तब ध्यान,ध्याता और ध्येय के भेद नहीं होते। वहाँ वचन का विकल्प नहीं होता, वहाँ (आत्मध्यान में) तो आत्मा ही कर्ता, आत्मा ही कर्म और आत्मा ही क्रिया होती है। वहाँ ध्यान ध्याता ध्येय अर्थात् कर्ता कर्म क्रिया अखण्ड हो जाते हैं। शुद्धोपयोग रूप सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र एकरूप-अभेदरूप प्रगट होते हैं। प्रश्न३ - दीर्घ उत्तरीय प्रश्न - (क) छटवीं ढाल का सारांश लिखिये। उत्तर - जिस चारित्र के होने से समस्त परपदार्थों से वृत्ति हट जाती हैं। वर्णादि तथा रागादि से चैतन्यभाव को पृथक् कर लिया जाता है। अपने आत्मा में, आत्मा के लिये, आत्मा द्वारा,
SR No.009715
Book TitleGyanodaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
PublisherTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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