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________________ छहढाला - छटवीं ढाल अपने आत्मा का ही अनुभव होने लगता है, वहाँ प्रमाण, नय, निक्षेप, गुण-गुणी, ज्ञानज्ञाता-ज्ञेय, ध्यान-ध्याता-ध्येय, कर्ता-कर्म और क्रिया आदि भेदों का किंचित् विकल्प नहीं रहता। शुद्ध उपयोगरूप अभेद रत्नत्रय द्वारा शुद्ध चैतन्य का ही अनुभव होने लगता है उसे स्वरूपाचरणचारित्र कहते हैं। यह स्वरूपाचरणचारित्र चौथे गुणस्थान से प्रारम्भ होकर मुनिदशा में अधिक उच्च होता है। तत्पश्चात् शुक्लध्यान द्वारा चार घातिया कर्मों का नाश होने पर जीव केवलज्ञान प्राप्त करके १८ दोष रहित श्री अरिहन्तपद प्राप्त करता है। तत्पश्चात् शेष चार अघातिया कर्मों का भी नाश करके क्षणमात्र में मोक्ष प्राप्त कर लेता है। उस आत्मा में अनन्तकाल तक अनन्त चतुष्टय (अनन्तदर्शन-ज्ञान-सुख-वीर्य) का एक-सा अनुभव होता रहता है। पश्चात् उसे पंचपरावर्तनरूप संसार में नहीं भटकना पड़ता, वह कभी अवतार धारण नहीं करता अपितु सदैव अक्षय अनन्त सुख का अनुभव करता है। अखण्डित ज्ञान-आनन्दरूप अनन्तगुणों में निश्चल रहता है उसे मोक्षस्वरूप कहते हैं। जो जीव मोक्ष की प्राप्ति के लिये इस रत्नत्रय को धारण करते हैं और करेंगे उन्हें अवश्य ही मोक्ष की प्राप्ति होगी। प्रत्येक संसारी जीव मिथ्यात्व, कषाय और विषयों का सेवन तो अनादिकाल से करता आया है किन्तु उससे उसे किंचित् शांति प्राप्त नहीं हुई। शांति का एकमात्र कारण तो मोक्षमार्ग है। उसमें जीव ने कभी तत्परतापूर्वक प्रवृत्ति नहीं की। इसलिये अब भी यदि शांति की (आत्महित की) इच्छा हो तो आलस्य को छोड़कर अपना कर्तव्य समझकर रोग और वृद्धावस्था आदि आने से पूर्व ही मोक्षमार्ग में प्रवृत्त हो जाना चाहिये। यह मनुष्य पर्याय, सत्समागम आदि सुयोग बारम्बार प्राप्त नहीं होते इसलिये उन्हें व्यर्थ न गवांकर अवश्य ही आत्महित साध लेना चाहिये। (ख) प्रमाण, नय, निक्षेप क्या है ? उत्तर -प्रमाण - प्रमाण नयैरधिगमः अर्थात् प्रमाण व नयों के द्वारा तत्त्वों और रत्नत्रय का ज्ञान होता है। जो वस्तु के सर्वदेश को जानता है वह प्रमाण है। इसके २ भेद हैं प्रत्यक्ष प्रमाण और परोक्ष प्रमाण । नय-प्रमाण द्वारा जानी हुई वस्तु के एकदेश को जानने वाले ज्ञान को नय कहते हैं। नय के दो भेद हैं - द्रव्यार्थिक नय और पर्यायार्थिक नय। (ग) मुनिराज के २८ मूल गुणों के भेद-प्रभेद बताइए। उत्तर - संलग्न चार्ट का अवलोकन करें। (घ) सकल संयम चारित्र धारी भावलिंगी मुनिराज के स्वरूप का विस्तार से वर्णन कीजिये। उत्तर - (छटवीं ढाल के १ से ११वें छंद तक के आधार पर उक्त प्रश्न का उत्तर स्वयं खोजें)
SR No.009715
Book TitleGyanodaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
PublisherTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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